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दक्षिण भारत के जैन तीर्थ शासनचतुस्त्रिशिका' ( रचनाकाल-ई० सन् की तेरहवीं शती )। इसके पश्चात् उदयकीर्ति-( १३वीं शती ) द्वारा रचित तीर्थवन्दन में भी इस तीर्थ का विवरण है । १५वीं शती में दिगम्बराचार्य गुणकीर्ति ने स्वचरित तीर्थवन्दन में भी इस तीर्थ का वर्णन किया है। इसके अलावा १६वीं से १९वीं शती के अनेक दिगम्बर आचार्यों (ग्रन्थकारों) ने इस तीर्थ की चर्चा की है।
अब हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि राजा श्रीपाल कौन था ? तथा वह जैन धर्म के किस आम्नाय से सम्बन्धित रहा ? जहाँ तक राजा श्रीपाल का सम्बन्ध है, कुछ विद्वानों ने उसे राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र 'चतुर्थ' (१०वीं शती का अन्तिमचरण) का सामन्त माना है। जिला बैतूल के खरेला नामक ग्राम से शक-सम्वत् १०७९ एवं १०९४/ई० सन् ११५७ और ११७२ के दो लेख प्राप्त हुए हैं, जिनमें श्रीपाल की वंश परम्परा में नृसिंह, बल्लाल और जैत्रपाल नाम दिये गये हैं। खरेला ग्राम श्रीपाल के राज्य के अन्तर्गत ही स्थित रहा होगा।
जहाँ तक इस तीर्थ के श्वेताम्बर या दिगम्बर-सम्प्रदाय से संबंधित होने का प्रश्न है; उसके सम्बन्ध में हमें निम्न उल्लेख मिलते हैं
सर्वप्रथम १३वीं शती में मदनकीर्ति इस तीर्थ को एक दिगम्बर तीर्थ के रूप में उल्लिखित करते हैं। इसके पश्चात् भानुकीर्ति (१३वीं शती ई०) भी इसे दिगम्बर तीर्थ ही बतलाते हैं । १४वीं शताब्दी में श्वेताम्बराचार्य जिनप्रभसूरि इसे मात्र एक जैन तीर्थ के रूप में उल्लिखित १. यत्र यत्र विहायसि प्रविपुले स्थातुं क्षणं न क्षमस् ।
तत्रास्ते गुणरत्नरोहणगिरिर्योदेवदेवो महान् ॥ चित्रं नात्र करोति कस्य मनसो दृष्ट: पुरे श्रीपुरे । स श्रीपार्श्वजिनेश्वरो विजयते दिग्वाससां शासनम् ॥ ३ ॥
-शासनचतुस्त्रिशिका २. जोहरापुरकर-तीर्थवन्दनसंग्रह, पृ० १७९ । ३. वही, पृ० १७९। ४. वही, ५. जैन, बलभद्र--भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, खंड ४, पृ० २९४ ॥ ६. . वही, पृ० २९४ । ७. वही
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