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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन यह तो स्पष्ट है। उन्होंने यहाँ स्थित महालक्ष्मी के मन्दिर का जो उल्लेख किया है, वह आज भी विद्यमान है। ___आज यहाँ ३ जिनालय है; जो वर्तमान युग में निर्मित हैं; परन्तु उनमें रखी कुछ जिनप्रतिमाएँ मध्ययुगीन हैं । २
२. डाकिनीभीमशंकर जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्शनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत 'डाकिनीभीमशंकर' का भी उल्लेख किया है और यहाँ पार्श्वनाथ के मंदिर होने की बात कही है। ____ डाकिनीभीमशंकर, जिसकी गणना १२ ज्योतिलिङ्गों में की जाती है, पूना के उत्तर-पश्चिम में सह्याद्रिपर्वत ( पश्चिमी घाट ) पर स्थित है। जैन साहित्य में अन्यत्र इस स्थान का कोई भी उल्लेख प्राप्त नहीं होता, परन्तु चूंकि यह स्थान अत्यन्त प्रसिद्ध शैव तीर्थों में से एक है
और प्रायः ऐसा देखने में आता है कि किसी एक धर्म का तीर्थस्थान दुसरे धर्मवालों के लिये भी तीर्थरूप में मान्य हो जाता है । इसके पर्याप्त उदाहरण मिलते हैं, जैसे वाराणसी शैव और वैष्णव धर्म के साथ-साथ जैन धर्म का भी एक प्रसिद्ध तीर्थ है। श्रीशैलपर्वत ( जिसकी गणना १२ ज्योतिलिङ्गों में की जाती है) को हम १४वीं-१६वीं शती में शैव तीर्थ के साथ-साथ जैन तीर्थ के रूप में भी प्रतिष्ठित पाते हैं। श्रीशैल को जैन तीर्थ के रूप में उल्लिखित करने वाले एकमात्र जैन ग्रन्थकार जिनप्रभसूरि' हैं। उनके इस कथन का समर्थन यहीं से प्राप्त और शैवों द्वारा उत्कीर्ण कराये गये एक शिलालेख से होता है। अतः जिनप्रभ की उक्त मान्यता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। यदि यहाँ से भी श्रीशैल पर्वत के समान कोई जैन पुरावशेष प्राप्त हो जाता है तो जैन तीर्थ के रूप में इस स्थान की मान्यता स्वतः सिद्ध हो जायेगी। १. काणे, पी०वी०-धर्मशास्त्र का इतिहास, भाग ३, पृ० १४२५ । २. जैन, बलभद्र-भारत के दिगम्बर जैन तीर्थ, भाग ४, पृ० २३३-३५ । ३. डे, नन्दोलाल- ज्योग्राफिकल डिक्सनरी ऑफ ऐन्दशेंट एण्ड मिडुवल
इंडिया, पृ० ५१। ४. सालेटोर, बी ए.-मिडुवल जैनिज्म, पृ० ३१९,
देसाई, पी०बी०-जैनिज्म इन साउथ इंडिया, पृ० २३ ।
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