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________________ २५४ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ पार्श्वनाथ और महावीर के दो जिनालय हैं । भद्रबाहुस्वामी ने “कल्पप्राभत" के आधार पर "शत्रञ्जयकल्प" की रचना की। उसके बाद वज्रस्वामी और पादलिप्ताचार्य ने भी “शत्रुञ्जयकल्प' लिखा । उन्हीं के आधार पर संक्षेप में वि० सं० १३८५ में यह कल्प लिखा गया है।" ग्रन्थकार द्वारा उल्लिखित इस तीर्थ की प्राचीनता, विभिन्न नाम, तीर्थ का विस्तार, तीर्थङ्करों का आगमन, भरत एवं बाहुबलि द्वारा चैत्यों का निर्माण, करोड़ों मुनियों को यहां से सिद्धि एवं मुक्ति प्राप्त करने आदि सम्बन्धी कथानक पौराणिक मान्यताओं की कोटि में रखे जा सकते हैं। यद्यपि श्रद्धालु जैनों के लिये इनका विशिष्ट महत्त्व है, किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से ये कथायें उपेक्षणीय हैं । सम्प्रति, सातवाहन, विक्रमादित्य, पादलिप्त, आम और जावड़शाह को ग्रन्थकार ने यहाँ जिनालयों के निर्माण कराने का श्रेय दिया है। यद्यपि ये सभी व्यक्ति प्रायः ऐतिहासिक ही हैं, परन्तु उन सभी द्वारा यहां उद्धारकार्य कराने का कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं मिलता है।' कल्कि के प्रपौत्र मेघघोष द्वारा भविष्य में यहां जिनालयों के निर्माण कराने का ग्रन्थकार ने जो उल्लेख किया है, वह उनके श्रद्धालता की ओर संकेत करता है । इसीप्रकार इस तीर्थ की यात्रा करने तथा बिम्बों एवं चैत्यों के निर्माण कराने के सम्बन्ध में पुण्य-लाभ की जो बात कही गयी है, उसका उद्देश्य श्रद्धालु जैन उपासकों के अन्तःस्थल में इस तीर्थ के प्रति विशेष श्रद्धाभाव उत्पन्न करना ही है। जैन आचार्यों द्वारा समय-समय पर प्रसारित इसी अवधारणा से ही यहाँ अनेकानेक जिनालयों का निर्माण सम्भव हो सका है। कुमारपाल के मंत्री उदयन के पुत्र बाहड़ ( वाग्भट्ट ) द्वारा यहाँ जिनालय निर्मित कराये जाने का जिनप्रभसूरि ने उल्लेख किया है। यही १. शत्रुजयकल्प-( रचनाकार-तपगच्छीयधर्मघोषसूरि ) में सम्प्रति, सातवाहन, विक्रमादित्य, पादलिप्त, आम और जावड़ शाह द्वारा यहां जिनालयों के निर्माण कराने का उल्लेख है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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