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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
१२३२ के पश्चात ही सम्पन्न हुआ होगा।' वृद्धाचार्यप्रबन्धावली' में भी यहाँ स्थित महावीर स्वामी के जिनालय का उल्लेख है।
उपरोक्त विवरणों से स्पष्ट है कि पूर्व-मध्यकाल में वायड ब्राह्मणीय तथा जैन धर्म का एक प्रसिद्ध तीर्थ रहा। यहाँ वायुदेव तथा महावीर स्वामी के जिनालय विद्यमान थे। आज यह एक साधारण ग्राम मात्र है। यहाँ आज न तो कोई प्राचीन मंदिर है और न कोई ऐसा प्राचीन अवशेष ही मिला है। ग्राम के मध्य में सम्भवनाथ का एक जिनालय है, जो वि० सं० १९५० के लगभग निर्मित है। यह स्थान गुजरात राज्य के बनासकांठा जिलान्तर्गत पाटन से २३ किमी० उत्तर-पश्चिम में स्थित है।
१९. शत्रुञ्जयकल्प शत्रुजय प्राचीनकाल से ही जैनों के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तीर्थ के रूप में विख्यात रहा है। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस तीर्थ की प्राचीनता, इसके विभिन्न नाम, पौराणिक एवं ऐतिहासिक घटनाओं आदि का सुन्दर विवरण प्रस्तुत किया है, जो संक्षेप में इस प्रकार है___ "शत्रुञ्जय के २१ नाम प्रचलित हैं, यथा १ --सिद्धक्षेत्र, २-तीर्थराज, ३--मरुदेव, ४-भगीरथ, ५--विमलाचल, ६-बाहबलि, ७सहस्रकमल, ८--तालध्वज, ९- कदम्ब, १०--शतपत्र, ११– नगाधिराज, १२--अष्टोत्तरशतकूट, १३--सहस्रपत्र, १४--ढङ्क, १५१. सुकृतसंकीर्तन-( रचनाकार-अरिसिंह-१२३१ ई० सन् ),
सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी ( उदयप्रभसूरि १२३२ ई० सन् ) आदि ग्रन्थ जो वस्तुपाल-तेजपाल के सत्कार्यों का विवरण देते हैं, सन् १२३२ तक लिखे जा चुके थे, परन्तु इनमें वायड स्थित महावीर जिनालय का वस्तुपाल द्वारा पुननिर्माण कराये जाने का कोई उल्लेख नहीं है। अतः यह मानना अनुचित न होगा कि उक्त जीर्णोद्धार ई० सन् १२३२ के पश्चात्
ही सम्पन्न हुआ होगा। २. खरतरगच्छबृहत्गुर्वावली, पृ० ६३, ७३, ७८ । ३. शाह, अम्बालाल पी० ---जैनतीर्थसर्वसंग्रह, तीर्थसची-क्रमांक-८३८ । ४. सोमपुरा, के० एफ० --द स्ट्रक्चरल टेम्पल्स ऑफ गुजरात, पृ० २३०
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