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________________ २४४ पश्चिम भारत के जैन तीर्थ में जैन तीर्थस्थानों की सूची में मोढेरा का भी उल्लेख है। प्रबन्ध ग्रन्थों में यहाँ स्थित महावीर स्वामी के मन्दिर की चर्चा है। प्रभावकचरित' के "बप्पभट्टिसूरिचरितम्'' के अन्तर्गत सिद्धसेनसूरि द्वारा मोढेर के महावीर स्वामी को वन्दन करने तथा बप्पभट्टिसूरि के वहाँ दर्शनार्थ जाने का उल्लेख है । पुरातनप्रबंधसंग्रह के अनुसार "वलभी के नगर देवता द्वारा वर्धमानसूरि को निर्देश दिया गया कि साधुओं को जहाँ भिक्षा में प्राप्त क्षीर रक्त हो जाये और पुनः रक्त से क्षीर हो जाये, वहीं उन्हें ठहर जाना चाहिए; इस प्रकार वे मोढेर में १. मोढाख्यप्रौढगच्छश्रीविवोढानूढमूढतः । श्रीसिद्धसेन इत्यासीन्मुनीन्द्रस्तत्र विश्रुतः ॥८॥ विश्वविद्यावदातश्रीर्मान्यः क्षितिभृतामपि । मोढेरे श्रीमहावीरं प्रणन्तुं सोऽन्यदाययौ ॥९॥ इतश्च श्रीसिद्धसेनसूरयो जरसा भृशम् । आक्रान्ताः कृतकृत्यत्वात् सेच्छाः प्रायोपवेशने ।।२७४।। बप्पभट्ट विधेयस्य विनेयस्य मुखाम्बुजम् । दिदृक्षवो मुनि प्रषुर्वृत्तं चाह्वानहेतवे ।।२७५॥ तं दृष्ट्वा बहुमानार्दो गुरौ द्रागाजगाम च । राजपुभिः समं मोढेरके प्रभुपदान्तिके ॥२७७॥ प्रभोः स न्यासविन्यासं रुन्धन् प्रथमदर्शने । अतृप्तस्तस्य वात्सल्ये तेनासौ जल्पितः शमी ।।२७८।। "बप्पभट्टिमरिचरितम्” प्रभावकचरित, संपा० जिनविजय मुनि, पृ० ८०-९१. २. ततः पूर्देवतया श्रीवर्धमानसूरीणां बहिर्भमौ रोदनेन ज्ञापनम् । का त्वं सुदरि जल्प देविसदशे किं कारणं रोदिषि, भंगं श्रीवलभीपुरस्य भगवन् पश्याम्ययं प्रत्ययः । भिक्षायां रुधिरं भविष्यति पयो लब्धं भवत्साधुभिः स्थातव्यं मुनिभिस्तदेव रुधिरं यस्मिन् पयो जायते ॥ ..'मोढेरपुरे रुधिरं पतग्द्रहे पयो जातम् ॥ "वलभीभङ्गप्रबन्ध''--- पुरातनप्रबन्धसंग्रह, पृ० ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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