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पश्चिम भारत के जैन तीर्थ
लगाया जाता है कि प्रायः सभी ब्राह्मणीय तीर्थों को जैनी अपना तीर्थ बतलाते हैं । यह आरोप सत्य है, क्योंकि वर्तमान द्वारकाधीश के मंदिर में आज कोई भी जैन प्रभाव विद्यमान नहीं है।' फिर भी मध्ययुगीन जैनाचार्यों के विवरणों को पूर्णतः अस्वीकार नहीं किया जा सकता और यह माना जा सकता है कि मध्ययुग में यहाँ भी कुछ जिनालयों का निर्माण कराया गया होगा। यहाँ उत्खनन से कुछ जैन पुरावशेष भी प्राप्त हुए हैं जिनसे उक्त मान्यता की पुष्टि होती है। वर्तमान में यहाँ कोई भी जिनालय विद्यमान नहीं है ।
१२. नगरमहास्थान कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प' के अन्तर्गत "नगरमहास्थान" का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहाँ आदिनाथ के मंदिर होने की बात कही गयी है ।
नगरमहास्थान आज बड़नगर के नाम से प्रसिद्ध है । प्राचीन काल में इसका नाम आनन्दपुर था, पर बाद में इसके नगर, वद्धनगर, वड़नगर आदि नाम प्रचलित हए । जैन परम्परा में आनन्दपुर का विशेष महत्त्व है। जैन परम्परानुसार मैत्रकवंशीय राजा ध्र वसेन 'प्रथम' के पुत्र का आनन्दपुर में देहावसान हो गया, उस समय भद्रबाहु 'द्वितीय' ने राजा के पुत्रशोक को दूर करने के लिये सार्वजनिक रूप से प्रथम बार कल्पसूत्र की वाचना की। यह वाचना वीरनिर्वाण के ९८० वर्ष पश्चात् हुई।
मैत्रकवंशीय शासकों के दानपत्रों में इस नगरी का नाम आनन्दपुर
१. ढाकी, एम० ए० तथा शास्त्री, हरिशंकर-पूर्वोक्त, पृ० ३०५-३२० । २. यह सूचना प्रो० एम. ए. ढाकी से व्यक्तिगत रूप से प्राप्त हुई है, जिसके
लिये लेखक उनका आभारी है। ३. आचार्य, गिरजाशंकर वल्लभजी-संपा० गुजरातना ऐतिहासिक लेखो
लेखाङ्क १४३, पृ० २६; लेखाङ्क १४७, पृ० ४३ । ४. सांडेसरा, भोगीलाल जयसिंह-जैनआगम साहित्यमां गुजरात, पृ.
१८, ४२
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