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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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शासन में विभाग के रूप में इस स्थान का उल्लेख है ।' शीलादित्य 'तृतीय' के ई० सन् ६६४ के एक दानशासन में भी इस स्थान की चर्चा है । राष्ट्रकूटनरेश ध्रुव 'द्वितीय' के ई० सन् ८३५ के एक दानशासन में काशहद के एक ग्राम को दान में दिये जाने का उल्लेख है।' इसी प्रकार कृष्ण 'द्वितीय' के ई० सन् ९१०-११ के एक दानशासन में खेटक, हर्षपुर और काशहृद इन तीन स्थानों को साथ-साथ उल्लिखित किया गया है। १. शास्त्री हरिप्रसाद - मैत्रककालीनगुजरात, पृ० ४८
(प्रतिसंस्का) राय भिक्षु ( संघस्य च ? ) पादमूलप्रजीवनाय ( वनौटकान्तर ? ) काशहदान्तर्गतराक्षसकग्रामस्सोद्रङ्गस्सोपरि (करः) धुवसेन 'तृतीय' के ई० सन् ६५१ के एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख का अश, पंक्ति-१३ आचार्य गिरजाशंकर वल्लभजी-गुजरातना ऐतिहासिक लेखो, भाग १,
लेखाङ्क ७५, पृ० २०३-२०४ २. सर्वानेव समाज्ञापयत्यस्तु वस्संविदितं यथा मया मातापित्रो: पुण्याप्यायनाय
कुशहद विनिर्गत तच्चातुव्वेद्य सामान्यभारद्वाजसगोत्रछान्दोगसचारिब्राह्मण .....। शीलादित्य 'तृतीय' का (गुप्त) संवत् ३४६/ई० सन् ६९४ के एक ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण लेख का अंश
वही, भाग १, लेखाङ्क ८०, पृ० २२१ ३. गायानन्तरं श्रीगोविन्दराजदेवेन ख्यापितज्योतिषिकनान्मेकासड्रहदेशान्त
त्ति पूसिलाराष्ट्रकूटनरेश ध्रुव 'द्वितीय' के ई० सन् ८३५-३६ के ताम्रपत्र पर
उत्कीर्ण लेख, पंक्ति-२९
वही, लेखाङ्क १२७, पृ० ६८ । ४. श्रीखेटकहर्षपूरकासद्हएतत् (i) अष्टिमयं समधिगतपंचमहाशद्वमहा
सामन्तप्रचण्डदण्डनायक श्रीचन्द्रगुप्ते । कृष्ण 'द्वितीय' का ई० ९१०-११ सन् कपडवज दानपत्र लेख
-पंक्ति ३३-३४ वही, भाग २, लेखाङ्क १३२, पृ० ११८ ।
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