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________________ २१५ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन २-अंचलगच्छीय महेन्द्रसूरि द्वारा रचित अष्टोत्तरीतीर्थमाला' ( रचना काल, वि० सं० १२९०)। ___३--जयसिंहसूरि द्वारा रचित वस्तुपालतेजपालप्रशस्ति ( रचना काल, वि० सं० १३वीं शती का अन्तिम चरण )। .. ४ --जिनहर्षगणि कृत वस्तुपालचरित ( रचना काल वि० सं० १४९८)। ___ इन ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि तेजपाल ने अपने भाई वस्तुपाल से पूछकर शकुनिकाविहार स्थित २५ देवकुलिकाओं पर स्वर्ण ध्वजादण्ड चढ़ाया । यह कार्य वि० सं० १२७८ से वि० सं० १२८६ के मध्य सम्पन्न हुआ माना जाता है। आज शकुनिकाविहार तथा अन्य प्राचीन जैन मंदिरों का पता भी नहीं है। मुस्लिम शासनकाल में यहाँ के अनेक धार्मिक स्थल मस्जिदों के रूप में परिवर्तित कर दिये गये । कुछ विद्वानों के अनुसार यहाँ जो जामा मस्जिद है, वही शकुनिका-विहार था। यह बात सत्य प्रतीत होती है, क्योंकि यह मस्जिद शहर के बाहर नर्मदा के तट पर स्थित है। इस मस्जिद के स्तम्भों और आन्तरिक संरचना को देखने से यह सिद्ध हो जाता है कि यह पहले जैन मन्दिर ही था। इस मन्दिर में हिजरी ७२१/वि० सं० १३७८ का एक लेख भी उत्कीर्ण है। गयासुद्दीन तुगलक के राज्यकाल ( ई० सन् १३२०-२५ ) में यहाँ (गुजरात) में उसका प्रतिनिधि ( सूबेदार ) मोहम्मद वुतुगरी शासन करता था, उसी समय उक्त परिवर्तन किया गया। ___आज यहाँ १२ जिनालय विद्यमान हैं, जिनमें से ४ उत्तर-मध्यकाल में निर्मित हैं और शेष वर्तमान युग के हैं।" १ विधिपक्षीयपंचप्रतिक्रमणसूत्राणि ( वि० सं० १९८४ ) अन्तर्गत प्रकाशित । २. देसाई, पूर्वोक्त पैरा ५२८ और ५५२ । ३. वस्तुपालचरित, ८।९७-१०३ । ४. क्राउझे-पूर्वोक्त पृ० २० । ५. वही, पृ० २२। । ६. वही, ७. शाह, अम्बालाल पी०-जैनतीर्थसर्वसंग्रह, भाग १, खंड १, २८-२९, तीर्थसूची - पृ० ६७-७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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