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पश्चिम भारत के जैन तीथं
ग्रन्थकार ने वि०सं० १०८१ में गजनीपति द्वारा गुजरात पर आक्रमण करने के पश्चात् सत्यपुर स्थित महावीर जिनालय को नष्ट करने का असफल प्रयास करते हुए उल्लिखित किया है। यह आक्रमणकारी महमद गजनवी था, जिसने वि० सं० १०८१ में भारत पर आक्रमण किया था तथा सोमनाथ के मंदिर को लूट लिया था। यह बात अन्य साक्ष्यों से भी स्पष्ट रूप से ज्ञात होती है।' महाकवि धनपाल ने भी कहा है कि तुर्कों ने धार, श्रीमाल, अणहिलवाड़, चन्द्रावती आदि स्थानों पर स्थित जिनालयों को नष्ट कर दिया, परन्तु सत्यपुर के महावीर मंदिर को क्षति पहुँचाने में वे असफल रहे। इसप्रकार जिनप्रभ की यह बात, जिसका अन्य साक्ष्यों से भी समर्थन होता है, प्रामाणिक मानी जा सकती है। ग्रन्थकार वे मालवनरेश द्वारा गुजरात पर आक्रमणार्थ सत्यपुर तक पहुँचने का उल्लेख किया है, परन्तु उन्होंने आक्रामक का नाम, घटना की तिथि आदि बातों की चर्चा नहीं की है। आक्रामक का आक्रमण किये बिना लौट जाना एवं तत्सम्बन्धी जिस घटना की चर्चा उन्होंने की है वह और अनैतिहासिक है। इसके साथ-साथ अन्य किसी भी साक्ष्य से मालव नरेश द्वारा गुजरात पर आक्रमण करने का उल्लेख प्राप्त नहीं होता। अतः जिनप्रभ का यह विवरण भ्रामक माना जा सकता है। वि०सं० १३४८ में उन्होंने देश पर मुगल आक्रमण होने की बात कही है। परन्तु इस तिथि में भारतवर्ष पर किसी विदेशी आक्रमण का उल्लेख नहीं मिलता। वि०सं० १३४२ ई० सन् १२८५ में यहाँ मंगोलों का आक्रमण अवश्य हुआ था, उस समय बलवन ( ई० सन् १२६६-१२८६ ) दिल्ली का बादशाह था। उसके ज्येष्ठ पुत्र मुहम्मद ने मंगोलों को हरा कर वापस लौटने को विवश कर दिया, परन्तु वह स्वयं इस युद्ध में मारा गया। लेकिन इस सम्बन्ध में यह भी स्मरण रखना चाहिए कि यह घटना ग्रंथकार के यौवनावस्था में घटित हुई थी अतः विचारणीय है। १. मजुमदार और पुसालकर-द स्ट्रगिल फॉर एम्पायल, (बम्बई, १९६६)
पृ० ६ और आगे। २. “सत्यपुरमहावीरजिनोत्साह", गाथा ५-७ जैन साहित्य संशोधक,
वर्ष ३, अङ्क २ में प्रकाशित। ३. मजुमदार और पुसालकर-पूर्वोक्त, पृ० १५५ ।
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