________________
जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
२०१ ग्रन्थकार के उक्त विवरण से अप्रत्यक्ष रूप से सिद्ध होता है कि सोधतिवालगच्छीय विमलसूरि १४वीं शती के पूर्व हुए थे उन्हें प्रतिमा प्राप्त होने के पहले भी शुद्धदन्ती नगरी जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित रही, क्योंकि किसी भी स्थान को जैनतीर्थ के रूप में प्रसिद्ध होने के पश्चात् ही वहाँ से किसी गच्छ का उदय होना संभव है । जिनप्रभ द्वारा उल्लिखित विमलसूरि एवं उनके गच्छ के बारे में हमें कोई जानकारी नहीं मिलती। उन्होंने यहाँ के जिनालय एवं प्रतिमा को मुसलमानों द्वारा भग्न किये जाने की जो बात कही है, वह भी सत्य माननी चाहिए, क्योंकि इस युग में किसी मुस्लिम आक्रमणकारी द्वारा मंदिरों को भग्न कर देना एक सामान्य बात थी। जहाँ तक इस तीर्थ की प्राचीनता का प्रश्न है, सिद्धसेनसरि द्वारा वि० सं० ११२३/ई० सन् १०६७ में रचित सक्लतीर्थ स्तोत्र में इसका उल्लेख है जिससे यह माना जा सकता है कि ११वीं शती के आसपास कभी यह स्थान जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित हआ होगा। हेमहंससूरि द्वारा वि० सं० १४७७ में लिखित मातकाक्षर तीर्थमाला में भी इस तीर्थ का उल्लेख है। वि०सं० १६६७ में अकबर के आमन्त्रण पर लाहौर जाते समय खरतरगच्छीय युगप्रधान जिनचन्द्र सूरि शुद्धदन्ती नगरी में ही ठहरे थे, यह बात श्री जिनचन्द्र सूरिअकबरप्रतिबोधरास से ज्ञात होती है।
शुद्धदन्ती नगरी आज सोजत के नाम से जानी जाती है। आज यहाँ १० जिनालय विद्यमान हैं, ये १७ वीं शती से १९ वीं शती के मध्य निर्मित है। इस प्रकार स्पष्ट है कि यह नगरी ११ वीं शती से ही जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित है और आज भी इसका प्राचीन गौरव १. खंडिल-डिंडूआयण नराण-हरसडर खट्टऊदेसे ।
नागउरमुव्विदंतिसु संभरिदेसंमि वंदेमि ॥ २४ ॥ दलाल, सी० डी०-डिस्कृप्टिव कैटलॉग ऑफ मैन्युस्कुिप्ट्स इन द
जैन भंडार्स ऐट पाटन पृ० १५६ २. आदरणीय श्री भंवरलाल जी नाहटा से उक्त सूचना प्राप्त हुई है, जिसके
लिये लेखक उनका आभारी है। ३. नाहटा, अगरचन्द, भंवरलाल--संपा० ऐतिहासिकजैनकाव्यसंग्रह
(क्लकत्ता वि०सं० १९९४ ) पृ० ६७। ४. शाह, अम्बालाल-जैनतीर्थसर्वसंग्रहतीर्थसूची, पृ० ३७९-३८२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org