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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
७. पल्ली (पाली)
कल्पप्रदीप के चतुरशीति महातीर्थ नामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत पल्ली ( वर्तमान पाली ) का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहाँ महावीर स्वामी के जिनालय होने की बात कही गयी है ।
पूर्व मध्ययुग में पाली का राजनैतिक एवं धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रहा । पालीवाल ब्राह्मणों, वणिकों तथा श्वेताम्बर जैनों के पल्लीवाल गच्छ की यहीं उत्पत्ति हुई है ।' अभिलेखों में इसके कई नाम मिलते हैं, यथा पाल्लिका, पल्लिका, पाल्ली आदि । * पश्चिम भारत के स्थापत्य कला के विकास में भी पाली का विशेष महत्त्व हैं । यहाँ के मन्दिरों में पश्चिम भारत की दो स्थापत्य शैलियों 'महामारु' तथा 'महागूर्जर' के दर्शन होते हैं । इस दृष्टि से यहाँ स्थित नौलखा मन्दिर उत्कृष्ट उदाहरण माना जा सकता है। इसका मूल प्रासाद 'महागूर्जर' और गूढ़ मंडप 'महामारु' शैली में निर्मित है ।
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पाली में जिनालय विद्यमान होने का सर्वप्रथम साहित्यिक उल्लेख सिद्धसेनसूरि द्वारा वि० सं० ११२३ में रचित 'सकलतीर्थस्तोत्र' " में प्राप्त होता है । यहां स्थित नौलखा पार्श्वनाथ मंदिर से कई अभिलेख मिले हैं, जो वि०सं० ११४४, ११५१, ११७८ और वि०सं० १२०१
१ - जैन, कैलाश चन्द्र - पूर्वोक्त, पृ० २९२-९३ ।
२ -- वही, पृ० २९२ ॥
३ – ढाकी, एम० ए० – 'जैन टेम्पुल्स ऑफ वेस्टर्न इण्डिया' महवीरजैन विद्यालय सुवर्ण महोत्सवअंक, भाग १, पृ० ३३२ ।
४. वही, पृ० ३३३ ।
५. दलाल, सी०डी० - पत्तनस्थप्राच्यजैनभाण्डागारीय ग्रन्थसूची, पृ० १५६
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