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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १९१ की चर्चा है | वि०सं० १३५६ के लेख में दिगम्बर सम्प्रदाय के मूल संघ का उल्लेख है ।" यह जिनालय स्थापत्यकला की दृष्टि से ११वीं शती में निर्मित माना जाता है। इसका भव्य शिखर मारु गुर्जर शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है । " द्वितीय जिनालय शांतिनाथ का है और अद्भुजी के नाम से जाना जाता है। इसमें मूलनायक के रूप में भगवान् शांतिनाथ की श्याम पाषाण की ९ फुट ऊंची विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठित है । प्रतिमा की चरण चौकी पर वि० सं० १४९४ / ई० सन् १४३७ का लेख उत्कीर्ण है । इसके अलावा यहाँ परवर्ती काल में निर्मित अन्य कई छोटे-छोटे जिनालय भी हैं । ६ नाणा कल्पप्रदीप के "चतुरशीतिमहातीर्थनाम संग्रहकल्प" के अन्तर्गत नाणा का भी जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है और यहाँ भगवान् महावीर के मंदिर होने की बात कही गयी है । नाणा आज नाना के नाम से जाना जाता है ।" १०वीं शती से १५वीं शती तक यह नगर विकसित दशा में विद्यमान रहा । ई० सन् १२२६ के लगभग नाणा के समीपवर्ती क्षेत्रों पर चाहमानवंशीय नरेश धांधलदेव, जो वीरधवल का पुत्र था, चौलुक्य नरेश भोम 'द्वितीय' [ ई० सन् ११७८-१२४१ ] के सामन्त के रूप में शासन करता रहा । १२३० ई० के लगभग यह क्षेत्र आबू के परमार शासक सोमसिंह के अधिकार में आया, परन्तु बाद में देवराचाहमानों ने इस पर पुनः अधिकार कर लिया । ई० सन् १६०२ के लगभग यह क्षेत्र मेवाड़ के राणा अमरसिंह के अधीन रहा । 9. Progress Report of the Archaeological Survey of India, Western cirle-1905-06, P. 63. R. Dhaky--Ibid. ३. शाह, अम्बालाल, पी पूर्वोक्त, पृ० ३३६-३८ ४. वही तथा नाहर, पूरनचन्द जैनलेखसंग्रह भाग - -२, लेखाङ्क १९५८ यह स्थान पश्चिमी रेलवे के अहमदाबाद - अजमेर लाइन के मध्य नाना स्टेशन से ३ मील दूर स्थित है । ५. ६. जैन, कैलाशचन्द्र - पूर्वोक्त, पृ० ४१६ । ७. वही, पृ० ४१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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