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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १८५ कराये जाने की बात कही गयी है । जिनालय के सभामंडप का ऊपरी भाग मस्जिदनुमा बनाया गया है । " मुस्लिम शासन स्थापित होने के पश्चात् इस जिनालय को उनकी कुदृष्टि से बचाने के लिये उक्त निर्माण कराया गया होगा । बाद में वि०सं० १६५६ में जब इसका पुनर्निर्माण कराया गया तो उस समय भी इसके मस्जिदनुमा आकृति को कायम रखा गया । इस जिना - लय में वि०सं० १८८७ तक के लेख विद्यमान हैं। ये लेख पंचतीर्थियों पर, चौबीसी पर, प्रतिमाओं ( धातु एवं पाषाण ) पर तथा देहरियों पर उत्कीर्ण हैं और इनकी संख्या ५० के लगभग है । " आज भी यह स्थान राजस्थान के प्रसिद्ध जैन तीर्थों में एक है । ४ नन्दिवर्धन आचार्य जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के "चतुरशीति महातीर्थनामसंग्रहकल्प'' के अन्तर्गत "नन्दिवर्धन" नामक तीर्थ का भी उल्लेख किया है और यहां भगवान् महावीर के मन्दिर होने की बात कही है। नन्दिवर्धन आज नांदिया के नाम से प्रसिद्ध है । यह स्थान वर्तमान राजस्थान प्रान्त के सिरोही जिलान्तर्गत स्थित है । सिरोही नगर से इसकी दूरी २४ किमी० तथा सिरोही रोड रेलवे स्टेशन से मात्र १० किमी० है । इस तीर्थ के कई नाम प्रचलित रहे हैं यथा १. आर्कियोलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया, वेस्टर्नसर्किल, ई० सन् १९०५ पृ० ६० । २. स्थानीय अनुश्रुति के अनुसार मुगल सम्राट् अकबर ने धार्मिक सद्भाव स्थापित करने के कारण मन्दिर के ऊपरी भाग को मस्जिदनुमा बनवा दिया । परन्तु यह बात उचित प्रतीत नहीं होती । वास्तवमें यह निर्माण स्वयं हिन्दुओं ने कराया था, क्योंकि वे मुसलमानों के ध्वंसात्मक नीति से परिचित थे, इसीलिए यह निर्माण कराया गया। इस काल में मुस्लिम शासकों द्वारा मन्दिरों को मस्जिदों में बदला जा रहा था। शत्रुंजय स्थित आदिनाथ का मन्दिर जिसे मस्जिद के रूप में बदल दिया गया, इसका ज्वलंत उदाहरण है - वही, पृ० ६० । ३. नाहर, पूर्वोक्त - लेखाङ्क, १९०२ से १९५७ । ४. तीर्थदर्शन, पृ० २६० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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