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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १७९ लणवसही का निर्माण तेजपाल ने वि०सं० १२८७ में कराया था, यह बात यहाँ से प्राप्त लेख से स्पष्ट होती है, परन्तु जिनप्रभ ने लूणवसही के निर्माण की तिथि वि०सं० १२८८ बतलायी है, जो उनका भ्रम हो सकता है। विमलवसही और लणवसही को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने क्षतिग्रस्त कर दिया। वि०सं० १३७८ में इनका पुनर्निर्माण कराया गया । यह आक्रमणकारी कौन था ? अलाउद्दीन खिलजी ने वि० सं० १३६५/ई० सन् १३०८ में जालोर पर आक्रमण किया था, उसी समय उसने इन मन्दिरों को भी नुकसान पहुँचाया होगा। विमल बस ही का पुननिर्माण वि०सं० १३७८ में सम्पन्न कराया गया, यह बात यहाँ उक्त तिथि के लेख में उत्कीर्ण है, परन्तु लूणवसही के पुनर्निर्माण के बारे में अन्यत्र कोई सूचना प्राप्त नहीं होती, अतः जिनप्रभसूरि की बात प्रामाणिक मानी जा सकती है। २. उपकेशपुर कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत उपकेशपुर का भी उल्लेख किया गया है और यहाँ महावीरस्वामी के एक जिनालय होने की बात कही गयी है। १. ॥ ॐ नमः . . . . . . . . . . . [संवत् १२८७ वर्षे लौकिक फाल्गुन वदि३ रवौ अद्येह श्रीमदणहिलपाटके चौलुक्यकुलकमलराजहंससमस्तराजावलीसमलंकृतमहाराजाधिराज श्रीभीमदेवविजयराज्ये ......... ...... .. श्रीवष्ट (ष्ठ) कुडयजता (ना) शिनलोद्भुत . . . . . . . . . . . ........ श्रीमदर्बुदाचलोपरि देउलवाडाग्रामे समस्तदेवकुलिकालंकृतं विशालहस्तिशालोपशोभितं श्रीलूगसिंहवसहिकाभिधान श्रीनेमिनाथदेवचैत्यमिदं कारितं ॥ मुनि जयन्तविजय-पूर्वोक्त, लेखाङ्क २५१ २. मजुमदार और पुसालकर-दिल्लीसल्तनत, पृ० ३३ ३. वसु-मुनि --तु (गु) ण ---शसि (शि) वर्ष (र्षे) ज्येष्टे (ष्ठ ) सितिनर ( व ) मिसोमयुतदिवसे । श्रीज्ञानचंदगुरुणां प्रतिष्टि (ष्ठि) तोऽबुंदगिरी ऋषभः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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