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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन १६९ ६ दशपुर जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत दशपुर का तीन स्थलों पर उल्लेख किया है प्रथम तो चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत जहां उन्होंने इस नगरी में भगवान् सुपार्श्वनाथ के मंदिर होने की बात कही द्वितीय पाटलिपुत्रकल्प मे जहां उन्होंने आर्यरक्षितसूरि को दशपुर नगरी का निवासी बतलाया है। दशपुर नगरी को शिवना नदी के तट पर स्थित आधुनिक मन्दसौर से समीकृत किया जाता है। प्राचीनकाल में दशपुर की गणना भारतवर्ष के प्रमुख नगरियों में होती थी। सांस्कृतिक एव राजनैतिकदोनों दृष्टियों से इसका विशेष महत्त्व था। शक-क्षत्रपकाल में इसकी गणना महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थानों में की जाती रही। गुप्त और गुप्तोत्तर युगों में यह नगरी औलिकरवंशीय राजाओं की राजधानी रही। कालिदास और वाराहमिहिर (ई० सन् ६ठीं शती) ने भी इस नगरी का उल्लेख किया है।५ मार्कण्डेयपुराण और स्कन्दपुराण में भी इस नगरी की चर्चा है। बौद्ध साहित्य में दशपुर का उल्लेख नहीं मिलता, अतः ऐसा प्रतीत होता है कि यह स्थान बौद्धों की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं रहा। ___ जैन साहित्य में दशपुर का विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है। जैन आगमिक ग्रन्थ ·वश्यकसूत्र की नियुक्ति, चूर्णी और वृत्तियों में इस नगरी के व्युत्पत्ति का सुन्दर विवरण प्राप्त होता है । १. भट्टाचार्य, पी० के०-"हिस्टॉरिकल ज्योग्राफी ऑफ मध्यप्रदेश" पृ० २०५। २. लाहा, विमलाचरण--प्राचीनभारतकाऐतिहासिकभूगोल, पृ० ५५९ ५६०। ३. त्रिवेदी, चन्द्रभूषण-दशपुर (भोपाल, १९७९ ) पृ० १। ४. वही, पृ० १। ५. वही, पृ० ३ ६. वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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