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मध्य भारत के जैन तीर्थ
प्रकार स्पष्ट है कि मंगलपुर में अभिनन्दनदेव का एक महिम्न जिनालय जिसे म्लेच्छों ने नष्ट कर दिया।
अब हमारे सामने दो प्रश्न आते हैं :१-जिनालय भग्न करने वाला म्लेच्छ कोन था ? और २-नवनिर्मित जिनालय को दान देने वाला मालवाधिपति जय
सिंह कौन था? जहाँ तक मालवाधिपति जयसिंह का प्रश्न है, उसे परमार नरेश देवपाल (१२१८-३९ ई० सन्) का उत्तराधिकारी जयतुगी (जयसिंह 'द्वितीय'1-१२३९-५५ ई० सन्) माना जाता है, और आक्रामक के संबंध में यह स्पष्ट है कि जयसिंह के पूर्व ही यहां आक्रमण हुआ था एवं उसी समय जिनालय आदि तोड़ा गया । यह आक्रमणकारी सम्भवतः दिल्ली का गुलामवंशीय शासक इल्तुत्मिश ही रहा होगा, जिसने ई० सन् १२३३ में विदिशा पर अधिकार कर उज्जयिनी को भी नष्टप्राय कर दिया था। यह तीर्थ आज विच्छिन्न है।
२. ओंकारपर्वत कल्पप्रदीप के चतुरशीतिमहातीर्थनामसंग्रहकल्प के अन्तर्गत ओंकार पर्वत का भी उल्लेख है और यहाँ भगवान् पार्श्वनाथ के जिनालय होने की बात कही गयी है। ___ ओंकारपर्वत का तो अन्यत्र उल्लेख नहीं मिलता; परन्तु ओंकारेश्वर, जिसकी गणना १२ ज्योतिलिङ्गों में की जाती है का उल्लेख अवश्य मिलता है और इसी ओंकारेश्वर से ओंकारपर्वत को समीकृत किया जा सकता है। जैन साहित्य में इस स्थान का कोई उल्लेख नहीं मिलता और अभी तक यहाँ से कोई जैन पुरावशेष भी प्राप्त नहीं १. प्रेमी, नाथूराम --जैन साहित्य और इतिहास पृ० १३४ २. कोठिया, दरबारीलाल -"प्राचीन तीर्थों की एक परिचयात्मक कृति"
चन्दाबाईअभिनन्दनग्रन्थ, पृ० ४०७-८ ३. मजुमदार और पुसालकर-संपा०-स्ट्रगिल फॉर एम्पायर- पृ० ७१ ४. सरकार, दिनेशचंद्र-द स्टडीज इन ज्योग्राफी ऑफ ऐंश्येंट एण्ड मिडु
वल इण्डिया (द्वि०सं०) पृ० २४५ ।
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