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अध्याय-७ मध्य भारत
जैसा कि पहले कहा जा चुका है, सातवें अध्याय में कल्पप्रदीप के उन तीर्थों को सम्मिलित किया गया है जो मध्य-भारत-वर्तमान मध्यप्रदेश की सीमा में अवस्थित हैं । अब इन तीर्थों का वर्णक्रमानुसार विवरण प्रस्तुत है ---
१-अवन्तीदेशस्थ-अभिनंदनदेव २-ओंकारपर्वत ३-कुडुगेश्वरनाभेयदेव ४-चन्देरी ५--ढीपुरी ६--दशपुर ७-विदिशा
१. अवन्तीदेशस्थ अभिनन्दनदेवकल्प जिनप्रभसूरि के कल्पप्रदीप के अन्तर्गत "अवन्तीदेशस्थ-अभिनंदनदेवकल्प" का भी उल्लेख प्राप्त होता है। उन्होंने इस तीर्थ के संबंध में जिन बातों का यथाश्रुत वर्णन किया है, वे संक्षेप में इस प्रकार
"मालव देश के अन्तर्गत मङ्गलपुर नामक एक नगरी थी, उसके निकट वन में अभिनन्दनदेव का एक जिनालय था। एक बार म्लेच्छों ने आकर उस जिनालय को भग्न कर दिया और जिन-प्रतिमा को नौ खंडों में खंडित कर दिया। स्थानीय मेव लोगों (जंगली जाति विशेष ) ने प्रतिमा के खंडों को इकत्र कर एक सुरक्षित स्थान में रख दिया । कुछ काल बीतने पर वाइजा नामक एक जनश्रावक वहाँ ब्यापार हेतु आया, जहां प्रशंगवश मेव लोगों ने उसे खंडित जिन-प्रतिमा के दर्शन कराये। वह श्रावक प्रतिदिन उस प्रतिमा के दर्शन के पश्चात् ही भोजन करता था । एक दिन लोभ से वशीभूत होकर मेवों ने प्रतिमा छिपा दी और
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