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________________ क्षमा आदि धर्म, निर्मलसंयम, उत्तम तप और यथार्थज्ञान-ये सब भी कषायभाव से रहित और शान्तभाव से युक्त होने पर निश्चयतीर्थ माने गये हैं। इसी प्रकार मूलाचार में श्रुतधर्म को तीर्थ कहा गया है, क्योंकि वह ज्ञान के माध्यम से आत्मा को पवित्र बनाता है । सामान्य निष्कर्ष यह है कि वे सभी साधन जो आत्मा के विषय-कषायरूपी मल को दूर कर उसे संसार समुद्र से पार उतारने में सहायक होते हैं या पवित्र बनाते हैं, वे निश्चयतीर्थ हैं। यद्यपि बोधपाहुड की टीका (लगभग ११वीं शती) में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख मिलता है कि 'जो निश्चयतीर्थ की प्राप्ति का कारण है ऐसे जगत-प्रसिद्ध मुक्तजीवों के चरणकमलों से संस्पर्शित उर्जयंत, शत्रुजय, पावागिरि आदि तीर्थ हैं और कर्मक्षय का कारण होने से वे व्यवहारतीर्थ भी वन्दनीय माने गये हैं। इस प्रकार दिगम्बर परम्परा में भी साधना-मार्ग और आत्मविशुद्धि के कारणों को निश्चयतीर्थ और पंचकल्याणक भूमियों को व्यवहार तीर्थ माना गया है। मूलाचार में भी यह कहा गया है कि दाहोपशमन, तृषानाश और मल की शुद्धि ये तीन कार्य जो करते हैं वे द्रव्यतीर्थ हैं किन्तु जो ज्ञान, दर्शन और चारित्र से युक्त जिनदेव हैं वे भावतीर्थ हैं । यह भावतीर्थ ही निश्चयतीर्थ है । कल्याणक भूमि तो व्यवहारतीर्थ है। इस प्रकार श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परमाराओं में प्रधानता तो भावतीर्थ या निश्चयतीर्थ को ही दी गई है, किन्तु आत्मविशुद्धि के हेतु या प्रेरक होने के कारण द्रव्यतीर्थों या व्यवहारतीर्थों को भी स्वीकार किया गया है। स्मरण रहे कि अन्य धर्म परम्पराओं में जो तीर्थ की अवधारणा उपलब्ध है, उसकी तुलना जैनों के द्रव्य-तीर्थ से की जा सकती है। बोधपाहुड, टीका २६।९१।२१ सुदधम्मो एत्थ पुण तित्थं । मूलाचार, ५५७ 'तज्जगत्प्रसिद्धं निश्चयतीर्थप्राप्तिकारणं मुक्तमुनिपादस्पृष्टं तीर्थउर्जयन्तशत्रुजयलाटदेशपावागिरि-। बोधपाहुड, टीका, २७।९३१७ दुविहं च होइ तित्यं णादव्वं दवभावसंजुत्तं । एदेसिं दोण्हं पि य पत्तेय परूवणा होदि ।। मूलाचार, ५६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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