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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
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में व्यतीत किये । जिनप्रभ ने उनके वर्षावास का तो उल्लेख किया है, परन्तु वे कितनी बार यहां वर्षावास हेतु रुके, यह नहीं बताया है । उनके आठवें गणधर अकम्पित का यहाँ जन्म होने का उल्लेख आवश्यक नियुक्ति', विशेषावश्यकभाप्य' आदि ग्रन्थों में मिलता है । कल्पप्रदीप में भी यही बात कही गयी है ।
मिथिला के राजा नमि के बारे में श्वेताम्बर परम्परा के ग्रन्थों में सविस्तार विवरण मिलता है । जिनप्रभ ने भी उन्हीं के आधार पर उक्त कथानक को उल्लिखित किया है । श्वेताम्बर जैन परम्परानुसार वीर निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् यहाँ स्थित लक्ष्मीधर चैत्य में आर्यं महागिरि का प्रशिष्य और कौडिन्य का शिष्य आसिमित्र चतुर्थ निह्न हुआ । जिनप्रभसूरि ने भी यही बात कही है, परन्तु उन्होंने आसिमित्र को महागिरि का शिष्य और कौडिन्यगोत्रीय बतलाया है, जो भ्रामक प्रतीत होता है ।
सीता का यहाँ जन्म हुआ था - ऐसा जिनप्रभ ने उल्लेख किया है । ब्राह्मणीय परम्परानुसार " सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं । जनक ने हल चलाते समय उन्हें भूमि में पाया था । राम के साथ सीता का विवाह हुआ। सीता के प्राप्ति स्थल, विवाह-स्थल आदि हिन्दुओं के पवित्र तीर्थ माने जाते हैं । ग्रन्थकार ने इन स्थलों का तटस्थ भाव से उल्लेख किया है ।
१. मिहिलाए अकंपिओ जाओ ।
आवश्यकनियुक्ति, सूत्र ६४४
२. विशेषावश्यकभाष्य २०१३; २५०६ ३. उत्तराध्ययनसूत्र ९।४-१४
तो विदेहे जणव मिहिला णगरी, तत्थ नमी राया,
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आवश्यकचूर्णी, उत्तरभाग, पृ० २०७
४. अव्वत्ताssसाढाओ सामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ ||
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आवश्यकनियुक्ति, सूत्र ७८० महिला नगरी, लच्छीधरं चेतियं, महागिरि य आयरिया, तत्थ तेसिं सीसो कोणि तव आसमित्तो सीसो, ........|
आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ४२२ ५. पाण्डेय, राजबली - पुराणविषयानुक्रमणिका, पृ० ३९५
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