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________________ जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन ६.मिथिलापुरीकल्प मिथिला विदेह जनपद की राजधानी और प्राचीन भारतवर्ष की एक प्रसिद्ध नगरी थी। रामायण, महाभारत, बौद्ध और जैन साहित्य में इसके बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। जन मान्यतानुसार यहाँ १९वें और २१वें तीर्थङ्करों का जन्म हुआ। महावीर स्वामी ने यहां विहार किया। उनके आठवें गणधर अकम्पित का यहीं जन्म हुआ। इन्हीं कारणों से यह नगरी जैन तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित हुई। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस तीर्थ का उल्लेख करते हए इसके सम्बन्ध में प्रचलित जैन मान्यताओं तत्कालीन स्थिति, रीति-रिवाज आदि का सुन्दर विवरण प्रस्तुत किया है जो संक्षेप में इस प्रकार है__ "भारतवर्ष के पूर्व देश में स्थित विदेह जनपद इस समय तिरहुत नाम से जाना जाता है । यहां के निवासी संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के ज्ञाता हैं । यहाँ केले के वृक्ष अधिक पाये जाते हैं । स्थान-स्थान पर मीठे जल वाली वापियाँ, कुएँ आदि हैं। आज यह नगरी 'जगई' नाम से जानी जाती है। यहाँ १९वें तीर्थङ्कर मल्लि ( स्त्रीतीर्थकर ) और २१वें तीर्थङ्कर नमिनाथ के च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान ये ४ कल्याणक हुए । मल्लि की माता का नाम प्रभावती और पिता का नाम कुम्भ था। इसी प्रकार नमि की माता वप्रादेवी थीं एवं विजय उनके पिता थे। भगवान् महावीर ने यहाँ वर्षावास भी व्यतीत किया। इनके आठवें गणधर अकम्पित का यही जन्म हुआ। जगबाहु और मदनरेखा के पुत्र नमि जिन्होंने प्रत्येकबुद्ध का पद प्राप्त किया, इसी नगरी के राजा थे। वीर-निर्वाण के २२० वर्ष पश्चात् यहीं स्थित लक्ष्मीधरचैत्य में कौडिन्यगोत्रीय आसिमित्र चतुर्थ निह्नव हुआ। सीता का यहीं जन्म हुआ, उनके जन्म-स्थान पर स्थित विशाल वटवृक्ष, उनका विवाह-स्थल-साकल्लकुण्ड, पाताललिङ्ग, कनकपुर आदि लौकिक तीर्थ भी यहाँ स्थित हैं । इस नगरी में मल्लिनाथ एवं नमिनाथ के अलग-अलग चैत्यालय हैं। मल्लिनाथ के चैत्यालय में वैरुट्यादेवी और कुबेर यक्ष तथा नमिनाथ के चैत्यालय में गन्धारी देवी और भकुटि यक्ष की भी प्रतिमायें हैं।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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