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जैन तीर्थों का ऐतिहासिक अध्ययन
५. पावापुरी पावापुरी जैनों का एक अति प्रसिद्ध तीर्थ है । परम्परानुसार २४३ तीर्थङ्कर महावीर का निर्वाण पावापुरी में ही हुआ था। जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत पावापुरी पर दो कल्प लिखे हैं
१---अपापापुरीकल्प
२-अपापाबृहत्कल्प उनके अनुसार पहले यह नगरी अपापा के नाम से जानी जाती थी परन्तु महावीर स्वामी का यहाँ निर्वाण होने से इसका नाम 'पावा' प्रचलित हुआ। ____ अपापापुरीकल्प के अन्तर्गत उन्होंने मुख्य रूप से इस नगरी के निकट पर्वत होने और यहाँ महावीर के निर्वाण होने का उल्लेख किया है । अपापाबृहत्कल्प में मौर्य नरेश सम्प्रति और आर्य सहस्ति के मध्य प्रश्नोत्तर का अति विस्तार से वर्णन है। इस प्रश्नोत्तर में महावीर का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनके निर्वाण की पूर्वसंध्या पर दर्शनार्थ आये राजा हस्तिपाल द्वारा पूछे गये प्रश्नों का महावीर के मुख से अत्यन्त विस्तारके साथ उत्तर दिलाया गया है । इसके अलावा सम्प्रतिसहस्ति प्रश्नोत्तर में अनेक पौराणिक बातों का भी अत्यन्त विस्तार के साथ उल्लेख किया गया है । प्रस्तुत अध्ययन में उक्त विवरणों को यहीं छोड़ते हुए १४वीं शती में पावापुरी की भौगोलिक स्थिति पर ही विचार किया गया है, क्योंकि आज इस नगरी की भौगोलिक स्थिति के बारे में प्रायः वही विवाद है, जो पिछले कुछ दशकों पूर्व उनके जन्मस्थान कुण्डग्राम के सम्बन्ध में उठा था।
वर्तमान में जैन धर्म के दोनों सम्प्रदायों ने बिहार राज्य के नालन्दा जिले में स्थित पावापुरी को महावीर के निर्वाण-स्थली के रूप में स्वीकार किया है। यहाँ सरोवर के मध्य एक भव्य जिनालय विद्यमान है। परन्तु आगमों में पावापुरी के सम्बन्ध में जो विवरण प्राप्त होता है उसके अनुसार यह नगरी मल्लों के राज्य में स्थित होनी चाहिए। कुछ विद्वानों ने प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर वर्तमान उत्तर १. पाटिल, डी० आर०-द एन्टीक्वेरियन रिमेन्स इन बिहार, पृ० ४२१
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