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पूर्व भारत के जैन तीर्थ
वंश में कुल ९ राजा हुये । अन्तिम नन्द राजा महापद्मनन्द को चाणक्य की मदद से चन्द्रगुप्त मौर्य ने गद्दी से हटा दिया और उसका समूल नाश कर स्वयं राजा बन बैठा । चन्द्रगुप्त के पश्चात् उसके वंश में बिन्दुसार, अशोक, सम्प्रति आदि राजा हुए।' सम्प्रति ने दक्षिण भारत के प्रदेशों-यथा आन्ध्र, द्रविण, महाराष्ट्र आदि में जैन धर्म का प्रचार किया ।२ ब्राह्मणीय और बौद्ध परम्परानुसार उदायी के पश्चात् मगध में शिशुनागवंश का राज्य स्थापित हुआ, परन्तु जिनप्रभसूरि ने स्वा भाविक रूप से जैन मान्यता का ही समर्थन किया है। अन्तिम नन्द राजा का मन्त्री शकडाल एक जैन उपासक था। उसे दो पुत्र थे, १ - स्थूलभद्र और २--श्रीयक । स्थूलभद्र प्रमिद्ध जैनाचार्य
इस नगरी में भविष्य में होने वाले कल्कि, धर्मदत्त, जितशत्रु आदि राजाओं का जो उल्लेख है, उसे ग्रन्थकार की व्यक्तिगत कल्पना ही समझनी चाहिए।
को भीषण गोत्रीय आचार्य उमास्वाति के बारे में जिनप्रभ ने जो उल्लेख किया है, वह श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थों में मिलता है।५
ग्रन्थकार ने भद्रबाहु, महागिरि, सुहस्ति और वज्रस्वामी के इस नगरी में आने का उल्लेख किया है। श्वेताम्बर परम्परानुसार आर्य १. आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ५६३-६५; उत्तरभाग, पृ० १७९ और आगे;
निशीथचूर्णी, भाग २, पृ० ३६१; बृहत्कल्पसूत्रभाष्य, ३।३२७६ । २. बृहत्कल्पसूत्रभाष्य, ३। ३२७५-८९; परिशिष्टपर्व, ११।८९-१०२ । ३. रायचौधरी, हेमचन्द्र-प्राचीन भारत का राजनैतिक इतिहास,
पृ० १६३ । ४. आवश्यकचूर्णी, उत्तरभाग, पृ० १८३ और आगे;
उत्तराध्ययनवृत्ति-(शान्तिसूरि) पृ० १०५ । ५. देसाई, मोहनलाल दलीचन्द-जैन साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास
पृ० १०१-१०३ । ६. विस्तार के लिये द्रष्टव्य-मेहता और चन्द्रा-प्राकृतप्रापरनेम्स,
पृ० ४४६-४७; हेमचन्द्र-परिशिष्टपर्व, सर्ग ११-१२।
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