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पूर्व भारत के जैन तीर्थ
आवश्यकचूर्णी के अनुसार चन्दनवाला जिसने भगवान् महावीर को कौशाम्बी नगरी में प्रथम पारणा करायी, चम्पा के राजा दधिवाहन की पुत्री थी। जिनप्रभ ने भी यही बात कही है । उन्होंने श्रेणिक (बिम्बिसार ) के पुत्र कुणिक (अजातशत्रु) द्वारा पिता के मृत्योपरान्त शोक दूर करने के लिये राजगृह से चम्पा नगरी में राजधानी स्थानान्तरित करने का जो उल्लेख किया है, वह भी जैन परम्परा पर ही आधारित है । "
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आर्य शय्यम्भवसूरि ने चम्पा नगरी में दशवैकालिकसूत्र की रचना की, यह बात उक्त ग्रन्थ लिखी गयी चूर्णी से ज्ञात होती है । * सुभद्रा इसी नगरी के प्रसिद्ध श्रेष्ठी जिनदत्त की पुत्री थी । सती नारियों में इनकी गणना की जाती है । जैन ग्रन्थों में इनके सम्बन्ध में विस्तृत कथानक प्राप्त होता है। जिनप्रभसूरि ने भी इनके बारे में प्रचलित कथानक की यहाँ संक्षिप्त चर्चा की है ।
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राजा कर्ण श्रेष्ठी सुदर्शन, महावीर का समकालीन श्रावक कामदेव, उसकी पत्नी भद्रा, सार्थवाह पालित्त, उसका पुत्र समुद्रपाल, स्वर्णकार कुमारनन्दि आदि सभी चम्पा नगरी से सम्बन्धित थे । वेताम्बर जैन ग्रन्थों में इनके बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होते हैं । "
कौशिकार्य के पुत्र रुद्रक के सम्बन्ध में जिनप्रभसूरि ने जिस कथा - नक का उल्लेख किया है, वह जैन साहित्य में अनुपलब्ध है । संभवतः किसी अज्ञात परम्परा के आधार पर उक्त बात कही गयी है ।
इस प्रकार स्पष्ट है कि जिनप्रभ ने इस नगरी के सम्बन्ध में जिन कथानकों का उल्लेख किया है, वे प्रायः जैन परम्परा पर आधारित
१. आवश्यकचूर्णी, पूर्वभाग, पृ० ३१८ २. ततो निग्गतो चंपं रायहाणि करेति ।
वही, उत्तरभाग, पृ० १७२
३. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ७
४. चंपाए जिणदत्तस्स धूता, सा सुभद्दा रूविणी तच्चनियगसड्ढेण दिट्ठा । आवश्यकचूर्णी उत्तरभाग, पृ० २६९ ५. विस्तार के लिये द्रष्टव्य — मेहता और चन्द्रा — पूर्वोक्त, पृ० २५२-५३ ।
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