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________________ उत्तर भारत के जैन तीर्थ मथुरा के देव-निर्मित स्तूप का प्राचीन जैन साहित्य में उल्लेख प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में जिन ग्रन्थों का प्रधानतया उल्लेख किया जा सकता है, वे इस प्रकार हैं बृहत्कल्पसूत्रभाष्य'-ग्रन्थकार-संघदासगणि क्षमाश्रमण (ई० सन् ७वीं शती)। बृहत्कथाकोष२-हरिषेण-(ई० सन् ९३२)। यशस्तिलकचम्पूर--सोमदेवसूरि (ई० सन् ११वीं शती)। बृहत्कल्पसूत्रभाष्य में कहा गया है कि यहाँ के लोग अपने घरों में जिन-प्रतिमा की पूजा करते थे। यही बात जिनप्रभ ने भी बृहत्कल्पसूत्र का उद्धरण देते हुए कहा है। देवधिगणि क्षमाश्रमण द्वारा त्रुटित एवं दीमक-भक्षित महानिशीथसूत्र को पूर्ण करने का जो उल्लेख कल्पप्रदीप में मिलता है, वह अन्य जैन ग्रन्थों में नहीं प्राप्त होता है। अतः यह विवरण विशेष महत्त्व का है। इसी प्रकार बप्पभट्टिसूरि एवं आम राजा के सम्बन्धों एवं उनके द्वारा मथुरा स्थित स्तूप के जीर्णोद्धार की विस्तृत चर्चा प्रभाचन्द्राचार्य कृत प्रभावक... चरित' में प्राप्त होती है । स्तूप के स्वामित्व के सम्बन्ध में बौद्धों से हुए विवाद का हरिषेण एवं सोमदेवसूरि ने भी उल्लेख किया है। परन्तु इसमें जैनों की ही विजय हुई। मथरा में हुए उत्खनन के परिणामस्वरूप एक स्तूप और दो मन्दिरों के खंडहर प्राप्त हुए हैं। इनमें बड़ी मात्रा में मूर्तियां, उनके सिंहासन और आयागपट्ट आदि मिले हैं। वहाँ प्राप्त पुरावशेषों से * ज्ञात होता है कि ई० पूर्व की दूसरी शताब्दी से लेकर लगभग ११वीं १. बृहत्कल्पसूत्रभाष्य-गाथा ६२७५ । २. बृहत्कथाकोष-"श्रीवैरकुमारसम्यक्त्वगुणप्रभावनाख्यानक मिदम्" __ कथा १२ । . ३. "अत एवाद्यापि तत्तीर्थ देवनिर्मिताख्यया प्रथते'' यशस्तिलकचम्पू (निर्णयसागर प्रेस, बम्बई), भाग २, पृ० ३१५ । ४. जैन , जगदीशचन्द्र - भारत के प्राचीन जैन तीर्थ, पृ० ४४ । ५. प्रभावकचरित- "बप्पभट्टिसूरिचरितम्" पृ० ८८-१११ । ६. स्मिथ, वीसेन्ट–जैन स्तूप एण्ड अदर एन्टीक्वीटीज ऑफ मथुरा (वाराणसी, १९६९ ई०) पृ० ८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002075
Book TitleJain Tirthon ka Aetihasik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivprasad
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Tirth, & History
File Size14 MB
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