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उत्तर भारत के जैन तीर्थं हैं। श्वेताम्बरों का जिनालय 'बाई का बाग' नामक मुहल्ले में है, जिसका हाल में ही निर्माण हुआ है ।
७. मथुरापुरी- कल्प
मथुरा नगरी शूरसेन जनपद की राजधानी और प्राचीन भारत की प्रमुख नागरियों में से एक है । रामायण, महाभारत तथा बौद्ध एवं जैन साहित्य में इस नगरी के बारे में विस्तृत विवरण प्राप्त होता है । रामायण के अनुसार शत्रुघ्न ने मधुवन में लवण नामक राक्षस का बध कर एवं यहां के वन को काट कर इस नगरी को बसाया था । महाभारत में शूरसेन देश की राजधानी के रूप में इस नगरी का उल्लेख है । यहां कंस के बंदीगृह में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ । बौद्ध परम्परानुसार मथुरा नरेश अवन्तिपुत्र के समय भगवान् बुद्ध यहां पधारे थे । जैन परम्परा में भी इस नगरी से सम्बन्धित अनेक कथानक प्रचलित हैं । आचार्य जिनप्रभसूरि ने कल्पप्रदीप के अन्तर्गत इस नगरी का एक जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख करते हुये यहां स्थित देवनिर्मित स्तूप और अनुश्रुतियों के रूप में प्रचलित कथानकों तथा यहां के प्रमुख स्थानों का सुन्दर वर्णन किया है । उनके विवरण की प्रमुख बातें संक्षेप में इस प्रकार हैं
"भगवान् सुपार्श्वनाथ के काल में धर्मघोष और धर्मरुचि नामक दो मुनि वर्षाबास हेतु मथुरा नगरी में आये और यहाँ स्थित भूतरमण नामक उद्यान में ठहरे । इनके तपश्चरण और अध्ययन से प्रभावित होकर उपवन की स्वामिनी कुबेरा ने इनसे जैन श्राविका के व्रत ग्रहण किया। बाद में कुबेरा ने उक्त मुनियों के निर्देश से यहाँ रत्नमय स्तूप की रचना कर मूलनायक के रूप में वहाँ सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा स्थापित की। स्तूप के निर्माण के पश्चात् बौद्धों ने इस पर अपना अधिकार स्थापित करना चाहा, पर उन्हें सफलता न मिली और जैनों का पूर्ववत् अधिकार बना रहा । एक बार यहाँ के राजा ने लोभवश स्तूप के रत्नों को लेना चाहा, तो देवी ने उसी की कुल्हाड़ी से उसका बध कर दिया, लोगों ने भयभीत हो देवी से क्षमा-याचना की तब उसने उनको अपने घरों में जिन प्रतिमा पूजने का आदेश दिया । यह
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