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सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ]
लोकाशाह
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यद्यपि किसी भी अन्य प्रकार की युक्ति प्रस्तुत करने की कोई आवश्यकता अवशिष्ट नहीं रह जाती किन्तु वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति" के समान ही "चैत्यवासी आदि द्रव्य परम्पराओं के कर्णधारों द्वारा शताब्दियों पूर्व अधिकांश जैन धर्मियों में रूढ़ कर दी गई-"धार्मिक हिंसा, हिंसा न भवति"-इस आगमविरुद्ध मान्यता को-रूढ़ि को निरस्त करने तथा पूर्वाग्रहाभिभूत लोगों को आगमप्रतिपादित सत्पथ पर लाने के लिये लोकाशाह को जीवन भर जूझना पड़ा। अनेक प्रकार की युक्तियों प्रयुक्तियों के द्वारा जन-जन को प्रागमप्रतिपादित त्रिकाल सत्य तथ्य से अवगत कराना पड़ा।
यद्यपि लोकाशाह की अकाट्य युक्तियों का, लोकाशाह के तत्काल प्रभावोत्पादक चमत्कारपूर्ण उपदेशों का, उनके द्वारा लोकभाषा में प्रकट किये गये आगमिक तथ्यों का सार उनकी ५८ बोल, ३४ बोल, १३ प्रश्नों और “केहनी परम्परा"-इन कृतियों में, “गागर में सागर वत्" छलक-छलक करता हुआ झलक रहा है, तथापि लगभग एक सहस्राब्दि से जैनसंघ में चली आ रही अनागमिक मान्यताओं से विमुख हो जैन लोग जिस विद्यतवेग से लोंकाशाह द्वारा प्रकाश में लाई गई आगमिक मान्यताओं की ओर उद्वेलित सागर की भांति उमड़ पड़ा, इससे यही अनुमान किया जाता है कि जन-जन के मन को अमित गति से आन्दोलित कर देने वाला लोंकाशाह का हृदयहारी औपदेशिक साहित्य अति विशाल था, अति विशद था और उस औपदेशिक साहित्य में प्रस्तुत की गई द्रव्य परम्पराओं की जड़ों तक को झकझोर डालने वाली युक्तियां अतीव प्रबल एवं अद्भुत प्रभावोत्पादिनी थीं। इस प्रकार के अनुमान की पुष्टि, कडुअामत के संस्थापक शाह कडुआ के शिष्य रामा कर्णवेधि द्वारा वि० सं० १५६२ में रचित ३२६ (फुलस्केप साइज के) पत्रों की "लुम्पक वृद्ध हुण्डी' के अन्त में उल्लिखित निम्न दो वाक्यों से भी होती है :
"ए हुण्डी शाह श्री कडुआ ना सीष सा रामा कर्णवेधी नी कीधी छि, प्रमाण छि, जेहनो कीधो वीर नो विवाहलो।"
"बोल ५७४ नो जबाप उत्तर, कडुआमती नो कर्यो ग्रन्थ छे।"
लोकाशाह के उपदेशों का वह विशाल साहित्य आज उपलब्ध नहीं है । तथापि लोकाशाह एवं उनके द्वारा अभिसूत्रित की गई धर्मक्रान्ति के विरुद्ध और लोकाशाह द्वारा प्रकाश में लाई गई आगमिक मान्यताओं के विरुद्ध द्रव्य परम्पराओं के कर्णधारों द्वारा किस प्रकार के हृदयद्रावी भयंकर षड्यन्त्र किये गये, उन षड्यन्त्रों के चिह्न आज भी तत्कालीन साहित्य के कतिपय पृष्ठों पर स्पष्टतः परिलक्षित हो ही जाते हैं।
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