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________________ सामान्य श्रु तधर काल खण्ड २ ] लोकाशाह [ ७५३ ठेर ठेर श्रीपुज्यो छड़ी, चामर, छत्र साथे पालखी म्यानादि वाहनो मां बेसी मोजमजा माणता हता। श्रावक ना घरे घर पगला करावता हता, नवांगी पूजा पण करावता हता अने पैसा पण लेता हता । राजा महाराजाओ ने ज्योतिष, वैदक, मंत्रादि करी आपी रंजन करी छड़ी छत्रादि लेता हता। राजकचेरी मां बेसता पण हता वली पैसा आपे ते लइ लेता हता। पोताना नामना उपाश्रय बंधावी कलम तोड़ी मांही रहता हता। लोकाशाह यतिजी थयां पछी सिद्धान्त नु अवलोकन करवा लाग्या । तेमने सूत्रज्ञान घणु विशाल थयुं । तेमनी निर्मल मति श्री वीर परमात्मा नी वाणी नां पवित्र प्राशय ने पामी गई। पोता नां ज्ञान चक्षु उघड्या, श्री वीर भाषित अणगार धर्म अने आ समय ना यतिवर्ग नी प्रवत्तिए बने वच्चे जमीन आसमान जेटलु अन्तर जणायु। यति लोको उत्सूत्र नी प्ररूपणां करता हता वली- दिगम्बर ने श्वेताम्बर आ बंने नी मूर्ति मां तफावत अने प्रभु ना नामे थतो प्रारम्भ पाखो जैनसमाज नो गतिप्रवाह उलटी दिशा मां वहेतो जोई तेमनु अंतःकरण जगत नां जीवो उपर दयात्मक भाव थी जोवा लाग्यं । तेमनां हृदय मां प्रबल प्रेरणा थई । तेथी लोकाशाह नीडरपणे जाहेर मां उपदेश प्रापवा लाग्या । सत्य मां खास भाविक रीते रहेला अद्भुत् आकर्षण शक्ति ना प्रभाव थी तेमनां भक्तो नी संख्या प्रतिदिन बधवा लागी। सिद्धपुर पाटण वगैरे मां विचरी लाखों जीवों नो उद्धार कर्यो । एक वखत संवत् पन्नर एकतीस मां केटलाएक यतियो सहित श्री अमदाबाद झवेरीवाड़ मां चातुरमास रह्या। तेमना सदुपदेश नी असर थी केटला एक यतिपणुं मुकी ने जैन शास्त्रानुसार अरणगार पणां नी तत्परता बतावी । ते थी लोकाशाहजी परण पुनः चारित्र धारण करी अणगार ने गृहस्थ नां बंने धर्मो समझाववा लाग्या । इति लखीतं तप गच्छ ना यति नायकविजय ना शिष्य कांतिविजय । पाटण नगरे संवत् १६३६ नी वसंत पंचमी ए। ऐम लखेलु हतुं ते प्रमाणे उतारो को छ ।” लोकाशाह ने श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण की थी और वे ही लोंकागच्छ अपर नाम "जिनमती" गच्छ के प्रथम आचार्य थे, इस सम्बन्ध में प्राचीन तथा अर्वाचीन पट्टावलियों एवं पत्रों में जो कतिपय उल्लेख जैन वांग्मय के आलोडन से प्रकाश में आये हैं, वे इस प्रकार हैं : १. समत पनरे ने अड़तांस (अड़तीस) री साल मीगसर सुद पांचम ने दिने अमदाबाद वाला लूकाजी दफतरी पीण दीष्या लीधी। पांच चेला लँकाजी ने हुवा । लुंका नाम थपीया। १. जैन धर्म नो प्राचीन संक्षिप्त इतिहास अने प्रभु वीर पट्टावली (लेखक मुनि श्री मणिलालजी महाराज) पृष्ठ १६१, १६२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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