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________________ ७४६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ श्री मुनिवर धनराज, क सेठ रामजी ने बूझव्या ए। सम्वत् पनरा छत्तीस, मास फागण बुदी ए ॥१४।। सप्तमी दिन परधान के, वार सोम जाणिये । प्रथम पहर उगन्ते, मुहूर्त तीसरो ए ॥१५॥ हरणी नक्षत्र योग २, संजय मुनि आदर्यो ए । लाख सोवन व तीन, पुत्र पंचु तज्या ए ।।१६।। अस्त्री बेसुकुमाल, अपछरा सारखी ए। तजी इत्यादिक रिद्ध, संजम मुनि आदर्यो ए ॥१७॥ सूत्र सिद्धान्त अनेक, गुरु पासे भणी ए। ले आज्ञा गुरु पास, जुया मुनि विचरतां ए ।।१८।। अनुक्रमे मुनिराय, मारुदेश आविया ए। कविराय चन्द सुजाण, तवन तेहनो करे ए ।।१६।। ढाल चौथी नी ए देशी, प्रथम मुनि ए कहीए ॥२०॥ दूहा शिष्य मुनिवर धनराज ना, जेम गौतम जिनवीर । ते इम लोंकागच्छ मांही, छे श्री धनराज प्रसिद्ध ।।१।। प्रथम पाट धनराजजी, तस्य शिष्य रामजी जारण । पाट मुनि धनराज नो, ई बीजो अवधार ॥२॥ प्रथम गणधर ज्ञान के, क्रिया करी भरपुर । पंच महाव्रत पालता, सुमत गुपत भरपूर ।।३।। पंच सुमिति गुप्ति तिहुं, नव विध ब्रह्मचार। इत्यादिक आदे दइ, गुण सत्तावीस सार ।।४।। . सकल गुणे करी शोभता, जेम धनो मेघकुमार । तेणे संजम पाल्यो, तिस्यो ए मुनि पंचमे काल ।।५।। देशी आस्याउरी तर्ज फाग ।। अनुक्रमे मुनिवर विचरता, मारुदेश मझार रे। श्री एकपुर नामे नगर, मां फुल्यवाड़ी उद्यान रे ।। अनुक्रमे मुनिवर विचरता ॥१॥ सम्वत् पनरे वरस जाणिये अडतालीसो सत सार रे । चैत्र मास शक्ल पक्ष में, एकादशी दिन सार रे ।।२।। अ० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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