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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] लोकशाह [ ६६१ उत्तमट्ठपडिवण्णो राइभत्तं भुंजेज्जा । ऊसकालं वा गच्छारगुकंपयाए वा राइभत्तागुन्ना, सुत्तत्थविसारए वा राइभत्तारणुन्नाए संखेवत्थो ।” इदानीं एकैकस्य द्वारस्य विस्तरेण व्याख्या क्रियते । ...." निशीथचूरिण मध्ये | तथा अनंतकायनुं डांडउ लेवउ कहिउ छइ, ते अधिकार लिखोइ छइ“ गिलाणो बालो व उवही वा, श्रद्धाणे तुभंति, सावयभए निवारणट्ठा घेप्पति उवहिं सरीराणं वहणट्ठा, पडिणीयगसारणमादी रिणवारणट्टा पुव्विं चित्तं, पच्छा मीसं से परित्ताणं, पुष्पं पुव्वं परितं जाव पच्छा अनंत ।" तथा एतला बोल प्रदई देइ घणां वृत्ति रिण माहिं सूत्रविरुद्ध दीसई छई, ते वृत्ति चूरिंग किम माइ ? डाहु हुई ते विचारी जो ज्यो, एह सत्तावन बोल | ५८. अट्ठावनमु बोल : हवइ अट्ठावनमु बोल लिखीइ छइ । तथा जे अनंता मोक्ष पुहता, वर्तमान कालइ जे मोक्षं पुहचइं छई अनइ अनागत कालई अनंता मोक्ष पुचस्य श्री वीतरागई इरणी परिइं मोक्ष कही, ते लिखीइ छइ : -- विवि भिक्खवो, आएसा वि भवंति सुवत्ताए । या गुणाई आहुतेका, सा तवस्स प्ररणधम्मयारिगो || तिविहेण वि पारण माहणे, आयहिए अनियाण संबुड़े । एवं सिद्धा तसो, संपइ जे प्ररणागयावरे ॥ इति श्री गडांग, बीजा अध्ययननी विषइ त्रीजा उद्देशउ, तेहनी विषइ । जीवदाई करी मोक्ष पुहता । एह अट्ठावनमु बोल । इति लुंकाना सहिमा अनइ लुकाना करिया अट्ठावन बोलो अनइ तेहनु विचार लिखीउ छइ, शुभं भवतु समरणसंघाय, श्री Jain Education International I परम्परा हवे परम्परा लखीए छीए । केटलाक एम कहे छे के वीर प्रभुए ग्रा ते परंपरा कही छे । श्री लोकाशाह प्रश्न करे छे के आ परम्परा कयां शास्त्रो मां कही छे ते बतावो । १. घरि प्रतिमा घड़ावी मंडावइ छइ ते केहनी परम्परा थइ ? २. नान्हा छोकरनई दीक्षा दिइ छइ, ते केहनी परम्परा थइ ? ३. नाम ( दीक्षा काले ) फेरवइ छइ, ते केहनी परम्परा छइ ? ४. कान वधारइ छइ, ते केहनी परम्परा छइ ? ५. खमासमासगु विहरइ छइ ते केहनी परम्परा छइ ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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