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________________ ६८६ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग ४ पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा कामभोगा पन्नत्ता, तं जहा–सद्दा, रूवा, रसा, गंधा, फासा।" इति श्री भगवती सातमा शतकनउ सातमु उद्देसउ । एह एकावन्नमु बोल ।' ५२. बावन्नम् बोल : हवइ बावन्नमु बोल लिखीइ छइ। तथा केवली जेहवी भाषा बोलइ, ते लिखीइ छइ-"रायगिहे जाव एवं वदासि, अन्नउत्थियाणं भंते एवं प्राइवखंति, जाव परूवेंति, एवं खलु केवली जक्खाएसेणं आतिक्खति, एवं खलु केवलीजक्खाएसेणं आति? समाणे आहच्च दो भासाओ मांसंति तं० मोसं वा सच्चामोसं वा। से कहमेअं भंते ? एवं गोयमा ! जणणं ते अण्णउत्थिया जाव जे ते एवमाहंसु मिच्छं ते एवमाहंसु । अहं पुण गोयमा ! एवमाइक्खामि-नो खलु केवली जक्खाएसेणं आदिस्संति, नो खलु केवली जक्खाएसेणं आति? समाणे आहच्च दो भासाओ भासंति । तं. मोसं वा, सच्चामोसं वा। केवली णं असावज्जाओ आएगेवधाइआओ आहच्च दो भासाओ भासंति, सच्चं वा असच्चामोसं वा।" इति श्री भगवती अढारमा शतकन सातमा उद्देसानइ विषइ । एह बानन, बोल । (सारांश-केवली भगवान् ऐसी निष्पाप और निरवद्य भाषा बोलते हैं, जिससे किसी भी प्राणी का उपघात न हो। इस प्रकार की दशा में निरवद्य उपदेश देने वाले वीतराग देव प्रतिमा, प्रासाद, पूजा जैसे पापकारी उपदेश दें, इस प्रकार की कभी कल्पना तक नहीं की जा सकती।) ५३. त्रेपनमु बोल : हवइ त्रेपनमु बोल लिखीइ छइ । तथा श्री वीतरागई जे तीर्थ कहिउं, तथा जे आलम्बन कहिया तथा यात्रा कही ते लिखीइ छइ-"तित्थं भंति ! तित्थं, तित्थंकरे तित्थं ।" गोयमा ! अरहा ताव निअमा तित्थंकरे, तित्थं पुण चाउवण्णो संघो, तं जहा-समणाओ, समणीओ, सावयाओ सावियाग्रो।" इति श्री भगवती वीसमा शतक मां आठमा उद्देशानइ विषइ।" धम्मस्स णं झाणस्स चत्तारि आलंबणा पन्नत्ता, तं जहा-वायणा, पड़िपुच्छणा, परियट्टणा, धम्मकहा। इति श्री भगवती शतक २५, उद्देसु सातमु ते विषइ। १. (लोकाशाह का इस बोल से अभिप्राय यह है कि जीव भोगी होता है, न कि अजीव । यह आगम वचन भगवती सूत्र में स्पष्टतः प्रतिपादित है । इस प्रकार की दशा में प्रतिमा क्यों कि अजीव है अतः उसको उद्दिष्ट कर जो भोग धरे जाते हैं, वह भोग धरने की प्रक्रिया शास्त्रविरुद्ध है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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