________________
श्रमण भगवान महावीर के ५७वें पट्टधर
आचार्य श्री मन्त्रसेन
१८०६
जन्म
वी. नि. सं. १७५४ दीक्षा
१७७६ आचार्यपद स्वर्गारोहण
१८४२ गृहवासपर्याय
२२ वर्ष सामान्य साधुपर्याय
३० वर्ष आचार्यपर्याय
३६ वर्ष पूर्ण संयमपर्याय
६६ वर्ष पूर्ण आयु
८८ वर्ष वी. नि. सं. १८०६ में मूल श्रमण परम्परा के ५६वें पट्टधर आचार्यश्री गजसेन के स्वर्गस्थ हो जाने पर, चतुर्विध धर्म संघ ने, उस समय के श्रमणों में सर्वश्रेष्ठ आगम मर्मज्ञ, मुनि श्री मन्त्रसेन को श्रमण भगवान महावीर की मूल परम्परा के ५७वें पट्टधर आचार्यपद पर अधिष्ठित किया।
जिस समय मुनिश्री मन्त्रसेन प्राचार्यपद पर आसीन किये गये, उस समय उनकी अवस्था ५२ वर्ष की थी। अपनी ३० वर्ष की सामान्य साधुपर्याय के अनुभवों के बल पर जिनशासन का संचालन भली-भांति कर श्रमण-श्रमणी संघ को शिथिलाचार परक तत्कालीन वातावरण से अछूता रक्खा और अपने अनुयायी श्रावकश्राविका वर्ग में एकान्ततः अध्यात्मपरक भावार्चना के भाव भर-भर कर भाव परम्परा को बलवती बनाने का प्रयास किया।
३० वर्ष की सामान्य श्रमणपर्याय और ३६ वर्ष की प्राचार्यपर्याय इस प्रकार कुल मिलाकर ६६ वर्ष की निरतिचार संयमपर्याय का पालन करते हुए आपने वी. नि. सं. १८४२ में ८८ वर्ष की आयु पूर्ण कर समाधि अवस्था में स्वर्गारोहण किया।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org