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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] आगमिकगच्छ i ५५६ प्रसार करते हुए आचार्य यशोदेव स्थान-स्थान पर भव्यों को प्रागमिक मार्ग पर श्रारूढ़ करने लगे । एक दिन एक स्थान पर कुमार रिण से उनका मिलन हुआ । कुमारगरि‍ और यशोदेव के बीच आगमोक्त विधि-विधानों के सम्बन्ध में परस्पर सौहार्दपूर्ण वार्तालाप हुआ । श्राचार्य यशोदेव कुमारगरिण के तपोपूत जीवन और आगमों के तलस्पर्शी ज्ञान से बड़े ही प्रभावित हुए । कुमार रिण आचार्य यशोदेव से श्रमण पर्याय में श्रेष्ठ थे । अतः उन्होंने कुमार रिण को प्राचार्यपद पर अधिष्ठित किया और उनका नाम शीलगरणसूरि रक्खा । तदनन्तर शीलगणसूरि और यशोदेव दोनों साथ-साथ विचरण करते हुए अनेक भव्यों को आगम विधि में स्थापित कर आगमिक पक्ष की अभिवृद्धि करने लगे । इसके बाद इस पट्टावली में बताया गया है कि एक दिन शीलगणसूरि और यशोदेव विचरण करते हुए अणहिल्लपुर पट्टरण में पहुंचे ।' वे वहां भगवान् अरिष्टनेमि के प्रासाद में देव वन्दन हेतु गये । उस समय उस मन्दिर में हेमचन्द्रसूरि के साथ महाराज कुमारपाल भी आये हुए थे । महाराज कुमारपाल ने शीलगरणसूरि और यशोदेव गरि को तीन स्तुति से देव वन्दन करते देख कर प्राचार्य श्री हेमचन्द्र से साश्चर्य प्रश्न किया- प्रभो ! यह किस प्रकार की देव वन्दना है ? क्या यह विधिपूर्वक है ?" इस पर हेमचन्द्रसूरि ने उत्तर दिया – “राजन् ! यह प्रागमिक विधि है अर्थात् आगम सम्मत विधि है ।" उसी समय से शीलगरणसूरि और यशोदेव गरिण के विधि पक्ष की ख्याति लोक में आगमिक पक्ष के रूप में प्रचलित हो गई। इस घटना से प्रकट होता है कि कुमारपाल भूपाल के समक्ष हेमचन्द्रसूरि द्वारा शीलगरणसूरि की वन्दन विधि को श्रमिक विधि बताये जाने के परिणामस्वरूप इनके गच्छ की ख्याति प्रागमिक गच्छ के नाम से हुई । शीलगरणसूरि ने अपने जीवनकाल में प्रागमिक पक्ष का देश के विभिन्न भागों में विचरण कर प्रचार-प्रसार किया और चिरकाल तक विशुद्ध संयम का पालन कर वे समाधिपूर्वक स्वर्गस्थ हुए । यहां एक बात विचारणीय है-- - इस पट्टावली में यशोदेवसूरि द्वारा सम्वत् १२१४ में आगम पक्ष की स्थापना का उल्लेख है और यह भी उल्लेख है कि जिस आगमिक गच्छ की पट्टावली में शीलगरणसूरि और यशोदेव के स्थान पर देवभद्र का नामोल्लेख है, पर यह लिपिक की गलती हो सकती है क्योंकि देवभद्र पूर्णिमागच्छ के आचार्य थे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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