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________________ ५१४ ] [ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग४ शास्त्रों के मर्मज्ञ भी हैं। यह सब कुछ होते हुए भी आप अाडम्बरपूर्ण छत्र, चामर आदि परिग्रह रखते हुए सुखपाल में बैठ कर विचरण क्यों करते हैं ? श्रमण भगवान् महावीर ने निर्ग्रन्थ श्रमण-श्रमरिणयों के लिये जिस कठोर श्रमण धर्म का उपदेश दिया है, उससे विमुख हो आप शिथिलाचार के दलदल में क्यों डूबे जा रहे हैं ?" देढ़ी के मुख से कटु किन्तु आगम सम्मत शाश्वत सत्य को सुनकर लज्जानुभूति के साथ गहन विचार में निमग्न हो प्राचार्य जयसिंह ने शान्त स्वर में कहा"भद्रे ! तुमने जो उपालम्भ दिया है, वह वास्तव में अक्षरशः उपयुक्त एवं पूर्णतः समुचित ही है। पंचमकाल के कुप्रभाव से हम लोगों की इस प्रकार की वृत्ति बन गई है, जिसके लिये वस्तुतः हम स्वयं भी अन्तर्मन में खेद एवं लज्जा का अनुभव करते हैं। हमारी प्रान्तरिक कामना यही है कि कोई क्रान्तिकारी महापुरुष साहस के साथ आगे आये और शिथिलाचार के दलदल में धंसे संघरथ का इस दुरवस्था से उद्धार कर इसे आगमानुसारी विशुद्ध प्रशस्त पथ पर अग्रसर करे।" — तत्पश्चात् विजयसिंहसूरि ने श्रेष्ठिदम्पति को आश्वस्त करते हुए कहा"संघरथ का शिथिलाचार के दलदल से उद्धार करने वाले इसी प्रकार के एक भावी महापुरुष के सम्बन्ध में शुभ सूचना देने हेतु मैंने तुम दोनों को यहां बुलाया है। हे श्राविकोत्तमे ! आज से सातवें दिन एक महान् प्रतापी जीव तुम्हारी कुक्षि में पायेगा । वह कालान्तर में जिनशासन का महान् प्रभावक प्राचार्य और विधिमार्ग अर्थात् आगमानुसारी मार्ग का संस्थापक होगा। जिनशासन के हित को दृष्टि में रखते हुए मैं अभी से तुम्हारे उस भावी पुत्र की, तुम दोनों से याचना करता हूं।" श्रेष्ठि-दम्पति ने हर्षविभोर हो उत्तर दिया- "भगवन् ! यदि हमारे पुत्र के हाथों जिनशासन की महती प्रभावना होने वाली है, तो यह हमारे लिये सबसे बड़े सौभाग्य की बात है। हम सहर्ष यह वचन देते हैं कि जब भी आप कहेंगे हम अपने उस भावी पुत्र को आपके चरणों में तत्काल ही समर्पित कर देंगे।" इस प्रकार की प्रतिज्ञा कर द्रोण श्रेष्ठि और उसकी पत्नी देढ़ी आचार्यश्री को वन्दन करने के अनन्तर अपने आवास की अोर लौट गये । उसी रात्रि में देढी ने भी स्वप्न देखा कि जिनशासनसेविका देवी उसे कह रही है- "कल्याणि ! तुम्हारा प्रथम पुत्र जिस समय ५ वर्ष का हो, उस समय उसे गुरुचरणों में समर्पित कर देना । उस पुत्र के पश्चात् समय पर तुम अपने दूसरे पुत्र को जन्म दोगी, जिससे कि तुम्हारे वंश की वृद्धि होगी।" देवी द्वारा की गई भविष्यवाणी के अनुसार श्रेष्ठि पत्नी देढ़ी ने सातवें दिन रात्रि के समय स्वप्न में गाय का दूध पीया और उसके गर्भ में एक महान् पुण्यशाली Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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