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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] महाराजां कुमारपाल [ ४२५ रहा है, यह वस्तुतः कुमारपाल की जैन धर्म को जन-जन का धर्म अथवा विश्वधर्म बनाने की उत्कट अभिलाषा का ही रूपकतुल्य प्रतीक प्रतीत होता है। . (५) कुमारपाल की सबसे बड़ी पांचवीं विशेषता यह थी कि वह सम्पूर्ण जिन-शासन को एकता के सूत्र में प्राबद्ध देखना चाहता था । अपने समय में विभिन्न गच्छों के अनुयायियों एवं गणधरों में पारस्परिक मतभेद, वैमनस्य, छोटी-छोटी बात को लेकर कलह, श्रमण समाचारियों में एकरूपता का नितान्त अभाव, पाक्षिक प्रतिक्रमण की तिथि के प्रश्न को लेकर परस्पर संघर्ष एवं विद्वेषपूर्ण अतीव कटु वातावरण से महाराज कुमारपाल के अन्तर्मन को दुःख होता था। उन्होंने इस प्रकार के कलहों को मिटाने के अनेक बार प्रयास भी किये । प्राचार्यश्री हेमचन्द्रसूरि द्वारा सोमेश्वर वन्दन आदि उनके जीवनवृत्त की अनेक घटनाओं पर विचार करने से स्पष्टतः यही प्रतीत होता है कि वे पारस्परिक समन्वय के पक्षधर एवं पोषक थे। हेमचन्द्रसूरि के इस समन्वयकारी व्यवहार का, विचारों का कुमारपाल पर पूरा प्रभाव था अतः उसने आगमिक मान्यताओं के स्थान पर परम्परा को, परम्परागत मान्यताओं को प्रमुख स्थान दिया। ये तथ्य कुमारपाल के जीवनवृत्त की निम्नलिखित एक दो घटनाओं से पूर्णतः प्रकाश में आते हैं। एक बार अणहिल्लपुर पट्टण में विद्यमान अनेक गच्छों के प्राचार्यों और उनके उपासकों में पाक्षिक प्रतिक्रमण के प्रश्न को लेकर बड़ा विवाद उत्पन्न हुआ और वह उग्र रूप धारण कर गया । कतिपय गच्छों के प्राचार्यों का कथन था कि पाक्षिक प्रतिक्रमण पूर्णिमा को ही होना चाहिए क्योंकि आगमों में पूर्णिमा के दिन प्रतिक्रमण करने का विधान है। आगम सर्वोपरि हैं, इस कारण सभी गच्छों के प्राचार्यों एवं अनुयायियों को आगम का समादर करते हुए पूर्णिमा को ही प्रतिक्रमण करना चाहिए। इसके विपरीत अनेक गच्छों ने अपना यह मन्तव्य रक्खा कि पाक्षिक प्रतिक्रमण पूर्णिमा को नहीं, चतुर्दशी को ही रखना चाहिये क्योंकि आर्यकालक सूरि ने विक्रम सम्वत्सर के प्रादुर्भाव से पूर्व ही चतुर्दशी के दिन प्रतिक्रमण करने की परम्परा प्रचलित कर दी थी और वही परम्परा शताब्दियों से जैन संघ में सर्वसम्मत रूप से चली आ रही है। इस प्रकार के विवाद ने जब उग्र रूप धारण किया और दोनों पक्षों में से एक भी पक्ष अपनी बात से किंचिन्मात्र भी इधर-उधर होने को उद्यत नहीं हुआ तो विवाद पत्तनेश कुमारपाल के पास पहुंचा। दोनों पक्षों की पूरी बात सुनने के पश्चात् धर्म संघ में प्रचलित परम्परा को ही महत्त्व देते हुए "चतुर्दशी के दिन ही सब गच्छों के अनुयायियों द्वारा प्रतिक्रमण किया जाय," इस प्रकार का निर्णय कुमारपाल ने दिया। इस निर्णय के उपरान्त भी पूर्णिमा के पक्षधरों ने इस निर्णय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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