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________________ सामान्य श्रुतधर काल खण्ड २ ] जिनदत्तसूरि [ २६६ अर्णोराज के समक्ष उपस्थित हो पासधर, रासल आदि श्रावकों ने गुरुदर्शनार्थ वसति में आने का उन्हें निमन्त्रण दिया। निश्चित समय पर अर्णोराज श्री जिनदत्तसूरि की सेवा में उपस्थित हुए। तपस्तेज से दैदीप्यमान बालब्रह्मचारी सूरिवर के प्रोजस्वी मुखमण्डल को देखते ही अर्णोराज बड़े प्रभावित हुए। नरेश्वर ने मुनीश्वर को श्रद्धापूर्वक नमस्कार किया। जिनदत्तसूरि ने राजा को आशीर्वाद दिया। आचार्यश्री के साथ हुए सुमधुर शुभ पालाप-संलाप से अर्णोराज ने अभूतपूर्व आनन्द की अनुभूति की। उसने जिनदत्तसूरि से प्रार्थना की-"महाराज ! आप सदा के लिए यहीं विराजमान रहें।" . जिनदत्तसूरि ने सस्मितमुद्रा में कहा-"राजन् ! हमारे श्रमण जीवन के विधि-विधान में नियत-निवास के लिए कोई स्थान नहीं। "स्वान्तः सुखाय समष्टिहिताय च" श्रमणों को बहते निर्भर की भांति ' सर्वत्र विचरण करते हुए सभी की ज्ञान पिपासा को शान्त करने का जीवनभर प्रयास करते रहना चाहिये। विहारक्रम से महीमण्डल पर विचरण करते हुए हम समय-समय पर आपके यहां भी आने का प्रयास करेंगे।" जिनदत्तसूरि के आध्यात्मिक प्रोज से प्रोत-प्रोत भव्य व्यक्तित्व और ऋजु, पटु, मृदु वाग्वैभव से अर्णोराज बड़ा संतुष्ट हुआ और अन्त में उन्हें नमस्कार कर राजप्रासाद की अोर लौट गया। अर्णोराज ने अजयमेरु नगर के जैन समाज को जिन मन्दिर आदि धर्म स्थान और आवास के लिए जो विस्तीर्ण भूखण्ड प्रदान किया, वह आज भी लाखन कोटड़ी के नाम से जिनदत्तसूरि व अर्णोराज की स्मृति जन-जन को दिला रहा है। __तदनन्तर जिनदत्तसूरि ने अजमेर से बागड़ प्रदेश की अोर विहार किया। यह संवाद बागड़ प्रदेश में विद्यत वेग से फैल गया कि जिनवल्लभसूरि के परम प्रभावक पट्टधर जिनदत्तसूरि जन-जन को जिनवाणी का अमृतपान कराने आ रहे हैं। स्थान-स्थान पर श्रद्धालु भक्त-जनों के विशाल जन-समूह अपने आराध्य आचार्यदेव की अगवानी के लिए एकत्र हुए मिलते। बागड़ में जिनदत्तसूरि के उपदेशों का ऐसा अद्भुत् एवं अमिट प्रभाव पड़ा कि उनके उपदेशों से प्रभावित हो अगणित लोगों ने सम्यकत्व ग्रहण किया, अनेकों ने श्रावक धर्म के १२ व्रत अंगीकार किये । व्रत-प्रत्याख्यान करने वालों की तो गणना करना ही कठिन हो गया था। कारण कि जिस किसी ने भी जिनदत्तसूरि के प्रवचनों को सुना उसने कोई न कोई व्रत अथवा प्रत्याख्यान ग्रहण किया ही । बागड़ विहार के प्रथम चरण में ही जिनदत्तसूरि के उपदेशों को सुनकर अनेक भव्यात्माओं को इस संसार से विरक्ति हो गई। अनेक पुरुषों ने जिनदत्तसूरि के पास पंच महाव्रत रूप श्रमण धर्म की दीक्षा ग्रहण की। खरतरगच्छ गुर्वावली के उल्लेखानुसार उस अवसर पर ५२ महिलाएँ श्रमणी धर्म में दीक्षित हुईं। यहां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002074
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year1995
Total Pages880
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size16 MB
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