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[ जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग ४
होना बाकी है । आन्ध्र कलिंग में भी जैनों के अनेक महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष उपलब्ध हुए हैं ।
साधारण रूप में दक्षिण भारत के अनेक स्थानों पर शोध कार्य अद्यावधि प्रगति पथ पर है । तथापि अद्यावधि तक जो भी सफलताएं प्राचीन पुरातात्विक सामग्री को खोज निकालने में प्राप्त हुई है उस सबका श्रेय मूलतः यहां के विभिन्न सम्भागीय मुख्यालयों में उपलब्ध प्राचीन जिला मैन्युलों और गजेटियरों को जाता है । वस्तुतः इन मैन्युअलों में जो विवरण उपलब्ध हैं उनसे पुरातात्विक खोज में बड़ा ही महत्त्वपूर्ण मार्ग-दर्शन मिला है । इनमें उल्लिखित सूचनाएं पूर्णतः विश्वसनीय सिद्ध हुई हैं । इनके आधार पर जहां भी शोधकार्य किया गया वहां किसी भी स्थान पर खोज व्यर्थ नहीं गई । इन मैन्युअलों में जैन धर्म के केन्द्रों का जिन-जिन स्थानों में उल्लेख किया गया है उन सभी स्थानों पर पुरातात्विक शोध विभाग के अधिकारियों को जैनों के उस समय के प्राचीन महत्त्वपूर्ण पुरातात्विक अवशेष ( मूर्तियां, शिलालेख आदि आदि) प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हुए हैं, जहां कि एक समय जैनों का बड़ा ही शानदार और सार्वभौम वर्चस्व था । इन पुरातात्विक अवशेषों के सम्बन्ध में अभी प्रकाशन होना अवशेष है । पैनोकोण्डा, ताड़पत्री, कोदृशिवेरम्, पटसीवरम्, अमरपुरम्, तम्मदहल्ली, आागली, कोटपी, इन ग्रनन्तपुर जिले के नगरों में, नन्दपेरूर, चिप्पीगिरि, कोगली, सोगी, बागली, विजयनगर, रायदुर्ग, इन बैलारी जिले के नगरों में, दानावुल्लापाडु नामक कुडुप्पह जिले के स्थान में, गुन्तूर जिले के अमरावती नगर में, कृष्णा जिले के मछलीपट्टम् एवं कलचुम्बरू नगरों में, कुरनूल जिले के श्री शैलम् नामक स्थान पर मद्रास के केन्द्रीय अजायबघर में, नेलोर जिले के कनुपरतीपाडु नामक स्थान में उत्तरी मारकाट जिले के वल्लीमलइ नामक स्थान में, दक्षिण कन्नड़ जिले के वेसरूर, कोटेश्वर, मुल्की, मूडविद्री, वेनूर, कारकल, एवं कडब नामक स्थानों पर और विजगापट्टम जिले के भोजपुर, लक्कुमवर पुकोट और रामतीर्थ नामक स्थानों पर जैन धर्म की पुरातात्विक सामग्री खोज निकाली गई है ।
इन पुरातात्विक अवशेषों से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि आन्ध्र एवं कर्णाटक मण्डल में एक समय जैनों का सर्वाधिक वर्चस्व एवं प्रबल प्रभुत्व था । श्री शैलम् से उपलब्ध पुरातात्विक अभिलेख बड़ा ही सनसनीखेज है । उसमें से यह एक भयोत्पादक तथ्य प्रकाश में आता है कि उस प्रदेश में जैनों का चिह्न तक मिटा डालने के लिये किस क्रूरता के साथ जैनों का संहार किया गया है । यह पुरातात्विक अभिलेख वस्तुतः एक शैव अभिलेख है । श्री शैलम् पर अवस्थित मल्लिकार्जुन मन्दिर के पूर्वीय संभाग में दक्षिण और वाम पार्श्व के स्तम्भों पर वि० सं० १४३३ का यह अभिलेख संस्कृत भाषा में उटंकित है । इस पर विक्रम सम्वत् १४३३, वर्ष प्रजोत्पत्ति, माघ कृष्णा चतुर्दशी सोमवार, यह दिनांक अंकित है । इस शिला
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