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अभयदेवसूरि
( नवांगी वृत्तिकार)
श्री अभयदेवसूरि वीर निर्वारण की सोलहवीं सत्रहवीं शताब्दी के आगम मर्मज्ञ, महान् टीकाकार एवं प्रभावक प्राचार्य हुए हैं ।
आप जैन इतिहास में नवांगी वृत्तिकार के विरुद से विभूषित एवं विख्यात रहे हैं । आपने आचारांग और सूत्रकृतांग को छोड़कर शेष नौ अंगों पर वृत्तियों की रचना करके जो जिनशासन की जिनवाणी की नितरां श्लाघनीय सेवा की है, उसके लिये जैन जगत् प्रापका सदा सर्वदा कृतज्ञ रहेगा ।
श्री अभयदेवसूरि का जन्म विक्रम सम्वत् १०७२ में मालव प्रदेश की इतिहास प्रसिद्ध धारा- नगरी में हुआ । प्रभावक चरित्र के उल्लेखानुसार प्राप महान् क्रियोद्धारक एवं संविग्न परम्परा के सूत्रधार प्राचार्य वर्द्धमानसूरि के प्रशिष्य और जिनेश्वरसूरि के शिष्य थे ।
प्रभावक चरित्र के अतिरिक्त “खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली” में भी श्री अभयदेवसूरि को जिनेश्वरसूरि का ही शिष्य बताया गया है । खरतरगच्छ वृहद् गुर्वावली का एतद्विषयक वह उल्लेख निम्नलिखित रूप में है :
पश्चाच्छी जिनेश्वर सूरिणा विहारक्रमं कुरुता जिनचन्द्र, अभयदेव, धनेश्वर, हरिभद्र प्रसत्रचन्द्र, धर्मदेव, सहदेव, सुमति प्रभृतयोऽनेके शिष्याः कृताः । ...। पश्चाच्छी जिनेश्वर सूरिभिः श्री जिनचन्द्राभयदेवौ गुरणपात्रं ज्ञात्वा सूरिपदे निवेषितौ क्रमेण युगप्रधानौ जातौ ।”
१.
प्रभावक चरित्र के उल्लेखानुसार अभयदेवसूरि का जन्म धारानगरी के महा समृद्धिशाली श्रेष्टि महीधर की पतिपरायणा धर्मपत्नी धनदेवी की कुक्षि से हुआ ।
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अन्यदा विहरन्तश्च श्री जिनेश्वरसूरयः । पुनर्घारापुरीं प्रापुः सपुण्यप्राप्यदर्शनाः ॥ ६१ ॥
श्रेष्ठी महीधरस्तत्र, पुरुषार्थ त्रयोन्नतः । ।।६२।। तस्याभयकुमाराख्यो, धनदेव्यंगभूरभूत ..... ।।६३।। अथाभयकुमारोऽसौ वैराग्येण तरंगित: । ........... ।।६५।। अनुमत्या ततस्तस्य, गुरुभिः स च दीक्षितः । ............।। ६६ ।।
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- प्रभावक चरित्र, पृष्ठ १६३-१६४
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