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________________ ७७० . जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [साध्वी-परम्परा की ४००० साध्वियों के मोक्षगमन का उल्लेख है। मुक्त हुई इन साध्वियों की यह संख्या उनके मुक्त हुए साधुनों की संख्या से दुगुनी है। इसी प्रकार कल्पसूत्र में भगवान् अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर की क्रमशः ३ हजार, २ हजार एवं १४०० साध्वियों के सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का उल्लेख है। इन तीनों तीर्थंकरों के मुक्त हुए साधुओं की अपेक्षा मुक्त हुईं इनकी साध्वियों की संख्या भी दुगुनी है।' इन सब तथ्यों से निर्विवादरूपेण यही सिद्ध होता है कि अनादि-प्रतीत में जितने भी तीर्थकर हुए हैं और महाविदेह क्षेत्र में जो तीर्थंकर विद्यमान हैं, उन सब ने पुरुषों और स्त्रियों को समान रूप से साधना के क्षेत्र में अग्रसर होने का अवसर अथवा अधिकार प्रदान किया है । भगवान् महावीर ने भी धर्मतीर्थ की स्थापना के समय जिस प्रकार इन्द्रभूति गौतम आदि ११ गणधरों को उनकी शिष्य-मण्डली सहित श्रमण-धर्म में तथा अन्य मुमुक्षु पुरुषों को श्रमणोपासक धर्म में दीक्षित कर पुरुष वर्ग को साधना. पथ का अधिकारी घोषित किया, उसी प्रकार चन्दनबाला प्रादि महिलामों को भी श्रमणी-धर्म में तथा अन्य मुमुक्षु महिलावर्ग को श्रमरणोपासिका धर्म में दीक्षित कर नारी वर्ग को भी पुरुषों के समान ही साधना द्वारा स्व-पर-कल्याण करने का अधिकारी घोषित किया। . सकल चराचर के शरण्य विश्वकबन्धु प्रभु महावीर ने जिस समय चतुर्विध धर्मतीर्थ की स्थापना की, उस समय आर्यावर्त में धार्मिक एवं सामाजिक स्थिति बड़ी विचित्र थी। "स्त्रीशद्रो नाधीयेताम्" का नाद घर-घर में, सर्वत्र गंजरित हो रहा था। पुरुष भोक्ता है और नारी भोग्या-इस प्रकार का 'अहं' पुरुषवर्ग में जागत हो चरम सीमा पर पहुंच चुका था। वह नारी को अपने समकक्ष स्थान देने के लिए सहमत नहीं था। अपनी प्रांखों पर पड़े स्वार्थपरता के प्रावरण के कारण पुरुषवर्ग ने नारी की हीनता का अंकन करने में किसी प्रकार की कोरकसर नहीं रखी थी। साधना के क्षेत्र में भी अपना एकाधिपत्य बनाये रखने की आकांक्षा लिये पुरुषवर्ग ने नारी को अबला घोषित कर सन्यस्त जीवन के लिये अनधिकारिणी बतलाया। देश में सर्वत्र यही लोक-प्रवाह चल रहा था। ___ इस लोक-प्रवाह के विरुद्ध नारी को सन्यास-धर्म में दीक्षित करने का किसी धर्मप्रवर्तक को साहस नहीं हो रहा था। बोधर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध भी नारी को भिक्षुणी-धर्म में प्रवजित करने का सहसा साहस नहीं कर पाये, यह बौद्ध धर्मग्रन्थ 'चुल्लवग्ग' के निम्नलिखित विवरण से स्पष्टतः प्रकट होता है :___"बात उन दिनों की है जब भगवान बुद्ध कपिलवस्तु के न्यग्रोधाराम में विराजमान थे। महाप्रजापति गौतमी (भगवान् बुद्ध की मौसी, जिसने नवजात शिशु बुद्ध की माता के देहावसान के पश्चात् उन्हें अपना स्तनपान करा उनका 'न धर्म का मौलिक इतिहास, भाग १ (परिशिष्ट) पृष्ठ ५८६-५१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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