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________________ .७५३ काल नि० ग० भ्रान्ति]. सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण कुन्दकुन्द की शिष्य-परम्परा के प्राचार्य :(कुन्दकुन्द) १४. उमास्वाति (गृध्रपिच्छ) १८. देवनन्दी (मपरनाम जिनेन्द्र बुद्धि, पूज्यपाद) १५. बलाकपिच्छ १६. भट्टाकलंक १६. समन्तभद्र २०. जिनसेन १७. शिवकोटि २१. गुरगभद्र गुणभद्र के पश्चात् अर्हबलि का नाम देते हुए उपरोक्त लेख में निम्नलिखित रूप से संघ-विभाजन का विवरण दिया गया है : यः पुष्पदन्तेन च भूतबल्याख्येनापि शिष्यद्वितयेन रेजे। फलप्रदानाय जगज्जनानां, प्राप्तोऽकुराभ्यामिव कल्पभूजः ॥२५॥ अर्हबलिस्संघ चतुर्विधं स, श्रीकोण्डकुन्दान्वय मूलसंघं । कालस्वभावादिह जायमान,- द्वेषेतराल्पीकरणाय चक्रे ॥२६।। सिताम्बरादो विपरीत रूपेऽखिले विसंघे वितनोतु भेदं । तत्सेन नन्दि-त्रिदिवेश-सिंह-संधेषु यस्तं मनुते कुहक्सः ।।२७।। प्रर्थात् - पुष्पदन्त और भूतबलि- इन दो शिष्य रूपी अंकुरों से अंकुरित कल्पवृक्ष के समान जो संसारियों को मनोवांछित फल प्रदान करने के लिए प्रकट हुए, उन मर्हबलि ने काल स्वभाव से प्रवर्द्धमान द्वेष को कम करने के लिये कोण्डकुन्दांन्वय मूल संघ को (१) सेन, (२) नन्दी, (३) देव और (४) सिंह - इन चार संघों में विभक्त किया । जो व्यक्ति इन चारों संघों में भेद मानता है, वह कुदृष्टि-मिथ्यादृष्टि है। २२. महबलि २३. पुष्पदंत २४ भूतबलि भूतबलि के पश्चात् उक्त शिलालेख सं० १०५ में निम्नलिखित प्राचार्यों के नाम उटंकित हैं : २५ नेमिचन्द्र २६ माघनन्दि (उनके वंश में) अभयचन्द्रदेव (अभयचन्द्रदेव के अनुज) श्रुतकीर्ति श्रुतमुनि चारुकोति (इनके प्रशिष्य) पण्डितदेव (स्वर्ग १३२०) अभिनव श्रुत मुनि अभिनव पण्डित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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