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________________ काल नि०. ग• भ्रान्ति] सामान्य पूर्वधर-काल : देवदि क्षमाश्रमण ७३६ उनके उत्तराधिकारी बने अथवा अनिश्चित काल व्यतीत होने पर प्राचार्य बने, इस सम्बन्ध में कोई उल्लेख नहीं किया है । इन्द्रनन्दि द्वारा श्रुतावतार के श्लोक सं० १५१ में किये गये निर्देश से तो यही प्रकट होता है कि इन्द्रनन्दि के समय में धरसेन के काल, गुरुपरम्परा, शिष्यपरम्परा तथा गण - गच्छ प्रादि के सम्बन्ध में न तो कहीं किसी प्रकार का कोई उल्लेख ही उपलब्ध था और न किसी को एतद्विषयक कोई जानकारी ही थी। इन्द्रनन्दिकृत श्रतावतार में उल्लिखित पट-परम्परा को शोधपूर्ण सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर सहज ही यह तथ्य प्रकट हो जाता है कि वीर नि० सं०६८३ में दिवंगत हुए अंतिम प्राचारांगधर प्राचार्य लोहार्य के पश्चात् विनयंधर से लेकर प्रहबलि तक प्रभु वीर के पट्टधरों का जो नामोल्लेख किया है, वह अनुक्रमशः एक के पश्चात् हुए प्राचार्यों का क्रमबद्ध उल्लेख है। यदि किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न हो तो श्रुतावतार के श्लोक संख्या ८४ का सीधा सा अर्थ इस प्रकार होता है :- “ततः - तदनन्तर अर्थात् वीर नि० सं० ६८३ में स्वर्गस्थ हुए लोहार्य के पश्चात् क्रमशः विनयधर, श्रीदत्त, शिवदत्तं पोर प्रहद्दत नाम के अंग एवं पूर्वज्ञान के एकदेशधर चार मारातीय मुनि हुए।" - इस श्लोक की शब्दरचना से इस प्रकार का किंचिन्मात्र भी प्राभास नहीं होता कि विनयधर प्रादि वे चारों मुनि एक ही समय में अर्थात् समकालीन हुए होंगे, क्योंकि सम्पूर्ण श्रतावतार को ध्यानपूर्वक पढ़ने पर उसके १८७ श्लोकों में से एक भी ऐसा श्लोक दृष्टिगोचर नहीं होता, जिसमें एक ही समय में हुए दो अथवा दो से अधिक मुनियों का उल्लेख किया गया हो। ऐसी स्थिति में इन चारों प्रारातीय मुनियों के एक ही समय में होने की कल्पना तक नहीं की जा सकती। ____ इस प्रकार की स्पष्ट स्थिति के होते हुए भी विश्रुत विद्वान पं. जुगलकिशोरजी मुख्तार ने एतद्विषयक उपलब्ध अन्य प्रामाणिक साक्ष्य की मोर ध्यान न देकर अपनी पुस्तक 'समन्तभद्र' के पृष्ठ १६१ पर केवल अपने अनुमान के प्राधार पर विनयधर आदि चारों पारातीय मुनियों को समकालीन मानकर इन चारों का समुच्चय रूप से २० वर्ष का समय अनुमानित किया है। जन जगत् के ख्याति प्राप्त विद्वान् डा. हीरालालजी ने भी मुख्तारजी की कल्पना को बल देते हुए लिखा है : ____ "लोहार्य के पश्चात् चार पारातीय यतियों का जिस प्रकार इन्द्रनन्दि ने एक साथ उल्लेख किया है, उससे जान पड़ता है कि संभवतः वे सब एक ही काल में हुए थे। इसी से पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार ने उन चारों का एकत्र समय २० वर्ष अनुमान किया है।' श्री मुख्तार सा० और डॉ० हीरालालजी के उपर्युद्धत अनुमान. का अक्षरशः अनुकरण करते हुए क्षु० श्री जिनेन्द्रवर्णीजी ने एक प्रकार से सुनिरीत तथ्य के संमान विनयधर आदि चारों पारातीय मुनियों को समकालीन बता कर इन चारों ' षट्खण्डागम, भाग १, द्वितीय संस्करण की प्रस्तावना, पृ. २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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