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________________ ७३३ काल नि० ग० भ्रान्ति] सामान्य पूर्वधर-काल : देवदि क्षमाश्रमण हेमचन्द्र ने इन्द्रनन्दीकृत तावतार के समान ही अपने श्रतस्कंध में इन्द्रभति गौतम से लेकर अंतिम पाचारांगधर लोहार्य तक वीर निर्वाण के ६८३ वर्ष व्यतीत होने का उल्लेख किया है।' उपर्यल्लिखित पांचों पट्रावलियों में दिये गये तथ्यों की जम्बूद्वीप पण्णत्ती के अन्तर्गत दी गई श्रतधर पट्टावली द्वारा पूर्णतः पुष्टि की गई है। पाठकों को अन्यत्र खोजना न पड़े इस दृष्टि से उसे यहाँ अविकल रूप से दिया जा रहा है : ___ श्रुतधर-पट्टावलि गमिऊण वड्ढमाणं, ससुरासुरवंदिदं विगयमोहं । वरसुदगुरुपरिवाडिं, वोच्छामि जहाणुपुन्वीए ॥ १॥ विउल गिरितुंगसिहरे, जिरिंगद इंदेरण वड्ढमारणेण । गोदममुरिणस्स कहिदं, पमाणणयसंजुदं प्रत्थं ॥ २॥ तेण वि लोहज्जस्स य, लोहज्जेण य सुधम्मरणामेण । गणहर सुधम्मरणा खलु, जंबू णामस्स रिपट्टि ॥ ३ ॥ चदुरमलबुद्धि सरिदे, तिण्णेदे गणधरे गुणसमग्गे। केवलणाणपईवे, सिद्धिपत्ते णमंसामि ।। ४ ।। गंदी य णंदिमित्तो, अवराजिद मुरिगवरो महातेप्रो। गोवड्ढरणो महप्पा, महागुणो भद्दबाहू य ॥ ५॥ पंचेदे पुरिसवरा, चउदसपुव्वी हवंति गायव्वा। बारस अंगधरा खलु, वीर जिरिंणदस्स रणायव्वा ॥ ६ ॥ तह य विसाखायरिमो,पोटिलो खत्तिमोय जय रणामो। णागो सिद्धत्यो वि य, धिदिसेरणो विजय णामो य ॥७॥ बुद्धिल्ल गंगदेवो, धम्मसेणो य होइ पच्छिमनो। . पारंपरेण एदे दसपुव्वधरा समक्खादा ॥८॥ रणक्खत्तो जसपालो पंडु धुवसेण कंस आयरियो । एयारसंगधारी, पंचजणा होंति णिद्दिट्टा ।।६।। पामेण सुभद्द जसभद्दो तह य होइ जसबाहू । आयारधरा गया, अपच्छिमो लोह गामो य ।।१०।। पाइरिय परंपरया सायर दीवारण तह य पण्णत्ती। संखेवेण समत्थं, वोच्छामि जहाणुपुव्वीए ।।११।। इसी प्रकार काष्ठा संघ की गुर्वावली में भी इन्द्रभूति गौतम से लेकर लोहार्य तक यही क्रम देते हुए निम्नलिखित श्लोक में लोहार्य को अंतिम प्राचारांगघर बताया गया है : सुभद्रोऽथ यशोभद्रो, भद्रबाहर्गणाग्रणीः । लोहाचार्येति विख्याता, प्रथमांगान्धिपारगाः ।।१०।। - ' ब्रह्महेमचन्द्र विरचित श्रुतस्कंध, गाथा ६६, ६७,७१ से ७६ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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