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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [काल नि० ग० भ्रान्ति साधारण जन-मानस में ही नहीं अपितु चोटी के विद्वानों के हृदय में भी घर करने लगी। क्षल्लक जिनेन्द्रवर्णी जैसे बहश्रत एवं अध्ययनशील विद्वान ने भी प्रति श्लाघनीय परिश्रम से निर्मित अपने जनेन्द्र सिद्धान्त कोश में डॉ० हीरालालजी के अपूर्ण अभिमत को-४ प्राचार्य परम्परा-इस शीर्षक के नीचे -दृष्टि नं० २ (धवला, भाग १, प्रस्तावना २४/ नन्दीसंघ की प्राकृत पट्टावली- इस पंक्ति द्वारा एक मान्यता के रूप में प्रतिष्ठापित कर दिया है।'
छद्मस्थ द्वारा भूल संभव है, इस संदर्भ में तथ्यातथ्य की गहराई में उतरे बिना डॉ० हीरालालजी द्वारा प्रकट किये गये अभिमत को, जिस पर स्वयं उन्होंने अपना निर्णय और अधिक तथ्यों की गवेषणा के पश्चात् ही देने का स्पष्टतः उल्लेख किया है, प्राचीन प्राचार्यों की मान्यता के समकक्ष ही नहीं अपितु उससे भी सबल मान्यता के रूप में प्रतिष्ठापित करते हुए वर्णी जी ने निम्न नोट प्राधिकारिक भाषा में लिख दिया है
___"नोट - पहली दृष्टि में लोहाचार्य तक ही ६८३ वर्ष पूरे कर दिये, परन्तु दूसरी दृष्टि में लोहाचार्य तक ५६५ वर्ष ही हुए हैं। शेष ११८ वर्षों में अन्य ६ प्राचार्यों का उल्लेख किया है, जो आगे बताया जाता है। इन दोनों में प्रथम (द्वितीय) दृष्टि ही युक्त है। इसके दो कारण हैं, एक २२० वर्ष में ५ आचार्यों का होना दुःशक्य है और दूसरे ६८३ वर्ष पश्चात् षट्खण्डागम की रचना प्रसिद्ध है, उसकी संगति भी इसी मान्यता से बैठती है.।"3
वर्णीजी ने जैनेन्द्र सिद्धान्त कोष - प्रथम भाग के पृष्ठ ३३१ पर जो प्राचार्यपरम्परा की समयसारिणी दी है, उसमें गौतम से लोहाचार्य का वीर नि० सं० १ से ६८३ तक के काल का विवरण देने के पश्चात् डॉ० हीरालालजी द्वारा अर्द्धसमर्थित नन्दीसंघ की प्राकृत पट्टावली में लिखे गये गौतमादि लोहाचार्यान्त प्राचार्यों के वीर नि० सं० १ से ५६५ तक के काल का उल्लेख किया है। किन्तु इस चार्ट के पश्चात् पृष्ठ ३३२ पर दी गई लोहाचार्य से भूतबली तक के काल की सारिणी, पृष्ठ ३३५ से ३३६ पर - "४ समयानुक्रम से प्राचार्यों की सूची" शीर्षक के नीचे दी गई सारिणी, पृष्ठ ३४५ पर दी गई पुन्नाट संघ के प्राचार्यों की काल निर्देश सहित सूची तथा पृष्ठ ३४८ से ३५५ पर - ६ पागम परम्परा, समयानुक्रम से पागम की सूची- नामक शीर्षक के नीचे दी गई सारिणी में एक मात्र नन्दीसंघ की प्राकृत पट्टावली को ही मान्यता प्रदान कर अर्हबली, माघनन्दी, धरसेन, पुष्पदन्त, भूतबलि का समय ५६५ से ६८३ के बीच का देते हुए इनसे पश्चाद्वर्ती प्राचार्यों का भी उनके वास्तविक काल से लगभग १६० वर्ष पूर्व होने का उल्लेख किया है।
१ जनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भा० १, पृ० ३३१ । २ यहां "प्रथम दृष्टि" यह संभवतः प्रेस की गलती से छप गया है। वर्णी जी का अभिप्राय
नन्दीसघ की प्राकृत पट्टावलो में उल्लिखित द्वितीय दृष्टि से है। . - सम्पादक 3 जनेन्द्र मिद्धान्त कोश, भा० १, पृ० ३३१ ।
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