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________________ पूर्वधर काल सं० दिन. मा.] सामान्य पूर्वधर-काल : देवद्धि क्षमाश्रमण धरसेन' के शिष्य पुष्पदन्त और भूतबलि द्वारा रचित षट्खण्डागम के तुलनात्मक अध्ययन से यह आश्चर्यजनक तथ्य प्रकट होता है कि शैलीभेद को छोड़कर पन्नवरणा सूत्र और षट्खण्डागम में पर्याप्त साम्य है। इन दोनों प्रागमों की समानता सिद्ध करने वाले कतिपय तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं :- ... (१) जीव तथा कर्म का सैद्धान्तिक विवेचन इन दोनों शास्त्रों का विषय है। (२) दोनों का मूल स्रोत दृष्टिवाद है।' -- (३) इन दोनों रचनामों में निरूपण-साम्य के अतिरिक्त समान शब्दावलि एवं उक्तियों का प्रयोग भी अनेक स्थलों पर उपलब्ध होता है। . (४) इन दोनों की रचना सूत्र रूप में है। (५) दोनों में ही सूत्र कहीं-कहीं गाथात्मक भी हैं। (६) प्रज्ञापनासूत्र पौर षट्खण्डागम को निम्नलिखित गाथाएं पर्याप्त स्पेण समान हैं :प्रज्ञापना सूत्र समयं बक्कंतारणं, समयं तेसि सरीर निव्वत्ती। समयं पारगुग्गहरणं, समयं ऊसास-नीसासे ||६| एक्कस्स उजं गहरणं, बहूरण साहारणाणं तं चेव । जं बहुयारणं गहरणं, समासयो तं पि एगस्स ॥१०॥ साहारणमाहारो, साहारणमारणुपारणगहणं च । साहारगजीवाणं, साहारणलक्खरणं एवं ॥१०॥ हरिवंशपुराण में जिनसेन द्वारा दी गई प्राचार्यों की पट्टावली में उल्लिखित प्राचार्य परसेन के अतिरिक्त अन्यत्र किसी पट्टावली में पुष्पदन्त तथा भूतबलि के गुरू प्राचार्य परसेन का नाम दृष्टिगोचर नहीं होता । हरिवंशपुराण में दी गई पढावली के अनुसार बिनयंधर से १८वें प्राचार्य परसेन को यदि पुष्पदन्त मोर भूतबलि का शिक्षागुरू मान लिया जाता है तो घरसेन का समय वीर नि० सं० १.१३ से १०४३ के बीच का ठह- रता है। पुन्नाटसंघीय प्राचार्य धरसेन से यदि चन्द्रगुहावासी परसेन को भिन्न माना जाता है तो भी महंसी के पापहर्ती होने के कारण इनका समय निश्चित रूप से वीर नि.सं. ७८३ के पश्चात का ही ठहरता है। २ (क) प्रज्झयणमिणं चित्तं, सुयरयणं दिट्ठीवायणीसंद। जह वम्पियं भगवया, महमवि तह वष्णइस्सामि ॥३॥ (पण्णवणासुत, पृ०१) (स) प्रायणीयपूर्वस्थित पंचमवस्तुगत चतुर्षमहा-1 कर्मप्राभृतकाः सूरिधरसेन नामाभूत् ।।१०।। कर्म प्राकृतिप्राभृतमुपसंहार्यवषनिरिह सण्डः ॥१३४।। (श्रुतावतार-इन्द्रनन्दीकृत) (ग) भूदवालि-भयवदा जिणवालिद पासे दिट्ठ विसदिसुतेण पप्पामोति प्रवणयविण वालिदेण महाकम्मपडिपारस्स बोन्दो होहदि ति समुप्पणबुटिणा पुणे दम्बपमाणाणुगममादि कारण गंपरयणा कदा । (षट्सण्डागम, जीवट्ठाण, भा. १, पृ.७१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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