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________________ दिगम्बर परम्परा में वज्रमुनि ] दशपूर्वधर - काल : प्रार्यं नागहस्ती ५८३ ग्रन्थों में उल्लेख है कि जिस समय आर्य वज्र गर्भ में थे उस समय उनकी माता यज्ञदत्ता को माल खाने का दोहद उत्पन्न हुआ । उस समय आम्रफल की ऋतु नहीं थी । दोहद की पूर्ति न हो सकने के कारण यज्ञदत्ता दिनप्रतिदिन दुर्बल होने लगी । सोमदेव को अपनी गुर्विरणी पत्नी के कृषकाय होने का कारण ज्ञात हुआ' तो वह बड़े असमंजस में पड़ गया । अन्ततोगत्वा वह अपने कुछ छात्रों के साथ आम्रफल की खोज में घर से निकला । वह अनेक आम्रनिकुंजों, वनों प्रौर उद्यानों में घूमता फिरा किन्तु असमय में आम्रफल कहां से प्राप्त होता ? पर सोमदेव हताश नहीं हुआ, वह आगे बढ़ता ही गया। एक दिन वह एक विकट वन में पहुंचा। उस वन के मध्यभाग में उसने एक सघन प्राम्रवृक्ष के नीचे बैठे हुए एक तपस्वी श्रमण को देखा। यह देख कर उसके हर्ष का पारावार नहीं रहा कि वह आम्रवृक्ष बड़े-बड़े एवं पक्व श्राम्रफलों से लदा हुआ है । आम्र की ऋतु नहीं होते हुए भी आम्रवृक्ष को माम्रफलों से लदा देख कर सोमदेव ने उसे मुनि के तपस्तेज का प्रभाव समझा और भक्तिविभोर होकर उसने मुनि के चरणों पर अपना मस्तक रख दिया । सोमदेव ने अपने साथ प्राये हुए छात्रों में से एक छात्र के साथ अपनी पत्नी के पास आम्रफल भेज दिया और शेष छात्रों के साथ मुनि की सेवा में बैठ कर उपदेश - श्रवरण करने लगा। मुनि के त्याग - वैराग्यपूर्ण उपदेश और उनसे अपने पूर्वभव के वृत्तान्त को सुन कर सोमदेव को जातिस्मरण ज्ञान हो गया । भीषण भवाटवी के भयावह भवप्रपंच से मुक्त होने की एक तीव्र उत्कण्ठा उसके अन्तर में उद्भूत हुई और उसने तत्क्षण समस्त सांसारिक भटों को एक ही झटके में तोड़ कर उन अवधिज्ञानी सुमित्र मुनि के पास निर्ग्रथ-श्रमण-दीक्षा ग्रहण करली । सोमदेव के साथ आये हुए छात्र अहिछत्र नगर को ओर लौट गये । एक छात्र के साथ आये आम्र से यज्ञदत्ता का - दोहदपूर्ण हो गया । वाद में प्राये छात्रों के मुख से अपने पति के प्रव्रजित होने का समाचार सुन कर यज्ञदत्ता को बड़ा दुःख हुआ । गर्भकाल की समाप्ति पर यज्ञदत्ता ने तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । उन्हीं दिनों मुनि सोमदेव अपने गुरु सुमित्राचार्य के साथ विचरण करते हुए सोपारक नगर आये। मुनि सोमदेव गुरु की आज्ञा ले पास ही के पर्वत पर पहुँचे और वहां एक शिला पर खड़े हो सूर्य की प्रतापना लेते हुए ध्यानमग्न हो गये । यज्ञदत्ता को जब यह विदित हुआ कि मुनि सोमदेव निकटस्थ पर्वत पर सूर्य की प्रतापना ले रहे हैं तो वह नवजात शिशु को लेकर उस पर्वत पर मुनि के पास पहुँची । उसने बड़ी ही अनुनय-विनयपूर्वक सोमदेव को एक बार अपने तेजस्वी पुत्र की ओर देखने तथा घर लौट कर अपने गार्हस्थ्य भार को वहन करने की प्रार्थना की। बड़ी देर तक अनुनय-विनय करने के पश्चात् भी मात्राणि खादितुं नाथ, दोहदं मे मनः प्रियम् ॥ २१ ॥ [वृहत्कथाकोश ] २ बज्र के पिता श्रायं धनगिरि के गुरू को जातिस्मरणज्ञान था, इस प्रकार के उल्लेख श्वेताम्बर परम्परा में उपलब्ध होते हैं । [सम्पादक ] , Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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