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________________ ५०२ . जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [भ्रम का निराकरण भाग खड़ा हुआ और उसी के एक अधिकारी द्वारा उसकी हत्या कर दी गई। इस प्रकार ईसा पूर्व ३३१ में सिकन्दर २६ वर्ष की वय में सम्पूर्ण यूनान, पूरे मिस्र और समस्त ईरान के विशाल साम्राज्य का सम्राट् बन गया। प्रतिस्वल्प काल में ही प्राप्त हुई इतनी बड़ी सफलताओं ने सिकन्दर के मन में विश्वविजय की. भावना को बड़े प्रबल वेग से जागत किया। उसने अपने सेनापतियों के समक्ष भारत पर आक्रमण करने की अपनी योजना रखी। जिनजिन लोगों ने भारत पर आक्रमण करने का विरोध किया उन्हें चुन-चुन कर सिकन्दर ने मौत के घाट उतार दिया। अन्ततोगत्वा ईसा पूर्व ३२७ में सिकन्दर ने महज विश्वविजय की अपनी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिये भारत पर आक्रमण कर दिया। . ___ यद्यपि शशि गुप्त और तक्षशिला के शासक प्रांभी जैसे घर के भेदी देशद्रोहियों का सिकन्दर को पूर्ण सहयोग प्राप्त था और भारत का उत्तरी सीमान्त प्रदेश छोटे-छोटे गणराज्यों में विभक्तं था तथापि देश की आन-बान की रक्षा के लिये हंस-हंस कर प्राण देने वाले रणबांकुरे प्रश्वकों, प्रश्वाहकों, गौरों, गान्धारपति-हस्ति, केकयराज पुरू, ग्लुचकायनों, कठों, आद्रिजों आदि ते प्राणपण से पग-पग पर सिकन्दर की सेनाओं के साथ क्रमशः बड़े ही लोमहर्षक युद्ध किये। भारत के उत्तरी सीमान्त के उन छोटे-छोटे गणराज्यों और राजाओं में संगठन के एक सूत्र में बंधे न होने के कारण अन्ततोगत्वा यद्यपि सिकन्दर की विशाल सेना के साथ युद्ध में पराजय का मुख देखा, पर इनके भीषण प्रहारों से सिकन्दर की सेना को बड़ी भारी क्षति उठानी पड़ी। यूनानियों के हौसले पस्त हो गये। सिकन्दर के सेनापतियों एवं सेनाओं ने स्पष्ट शब्दों में आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया। इससे सिकन्दर की विश्वविजय की महत्वाकांक्षा मिट्टी में मिल गई। उसके हृदय पर इससे ऐसा आघात पहुँचो कि वह कई दिनों तक अपने शिविर में तम्बू से बाहर तक नहीं निकला। यह पहले बताया जा चुका है कि भारतीयों के भीषण प्रतिरोध, अपनी सेनामों के आगे बढ़ने से इन्कार करने तथा अपने विजित क्षेत्रों में विद्रोह की भीषण आग भड़क उठने के कारण सिकन्दर को स्वदेश लौटने के लिये बाध्य होना पड़ा। स्वदेश लौटते समय रावी के तटों पर बसे मालवों ने सिकन्दर की सेनाओं के साथ बड़ा भीषण युद्ध किया। मालवों के साथ युद्ध करते समय सिकन्दर के सीने में एक गहरा घाव लगा.। इसी घाव के कारण ईरान पहुँचने पर ईसापूर्व ३२४ में केवल ३२ वर्ष की युवावस्था में ही सिकन्दर संसार से चल बसा। भारत पर किये गये अपने दुस्साहसपूर्ण अाक्रमण के प्रतिफल रूप में सिकन्दर को धन-जन-क्षय और अपनी मौत के अतिरिक्त कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ। भीषण नरसंहारक तुमूल युद्धों के उपरान्त भी सिकन्दर को वृहत्तर भारत का केवल थोड़ा सा पश्चिमोत्तरी भाग ही हाथ लगा और वह भी सिकन्दर के ईरान की ओर मुंह करते ही पुनः पूर्ण स्वतन्त्र हो गया.। छोटे-छोटे गणतन्त्रों और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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