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________________ जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [११. मार्य बलिस्सह १७. आर्य धनगिरि २६. आर्य संपलितभद्र १८. , शिवभूति २७. , वृद्ध १६. , भद्र २८. , संघपालित २०. , नक्षत्र , हस्ती २१ , दक्ष धर्म २२ , नाग ३१. , सिंह २३ , जेहिल ३२. , धर्म २४. , विष्णु ३३. , सांडिल्य' २५. , कालक महागिरि की परम्परा मुख्य होने के कारण यहाँ पर सर्व प्रथम नन्दी सूत्र को स्थविरावली के अनुसार महागिरि की परम्परा के प्राचार्यों का तथा उनके साथ ही उपरोक्त दोनों परम्परागों के प्राचार्यों का परिचय अनुक्रमशः दिया जा रहा है। ११. प्रार्य बलिस्सह वीर नि० सं० २४५ में आर्य महागिरि के स्वर्गगमन के पश्चात् उनके ८ प्रमुख स्थविरों (शिष्यों) में से प्रार्य बलिस्सह गणाचार्य नियुक्त हुए। उनके गण का नाम उत्तर बलिस्सह रखा गया। यहाँ शंका हो सकती है कि बहुल और बलिस्सह इन दोनों स्थविरों में ज्येष्ठ होने पर भी बहुल का नाम गणाचार्य में न देकर बलिस्सह को गणनायक वताने का क्या विशिष्ट कारण है, जब कि गरण के नाम में उत्तर-बलिस्सह इस नामान्तर से बहुल को भी जोड़ा गया है ? ऐसा प्रतीत होता है कि बहुल ने बलिस्सह से ज्येष्ठ और बहुश्रुत होने पर भी अपनी अल्पायु आदि कारणों से स्वयं आचार्य न बन कर अधिक प्रतिभाशाली बलिस्सह को ही प्राचार्य बनाना उचित समझा हो और इसीलिये बलिस्सह ने भी ज्येष्ठ के आदरार्थ गरण का नाम उत्तर बलिस्सह मान्य किया हो। बलिस्सह के जन्म, दीक्षा, माता-पिता आदि का परिचय उपलब्ध नहीं होने के कारण इतना ही लिखा जा सकता है कि बलिस्सह कौशिक गोत्रीय ब्राह्मण थे । आर्य महागिरि के पास श्रमण-दीक्षा ग्रहण कर उन्होंने १० पूर्वी का ज्ञान प्राप्त किया। प्रार्य महागिरि के समान प्रार्य बलिस्सह प्राचार-साधना में भी विशेष निष्ठा रखने वाले थे। यही कारण है कि आर्य महागिरि के पश्चात् वे इस परम्परा में प्रमुख गणाचार्य माने गये । महागिरि परम्परा के अन्य स्थविरों ने भी इनका गणनायकत्व स्वीकार 'कल्पसूत्र स्थविरावली के अंत में दी गई देवद्धि क्षमा श्रमण की वंदन गाथा के आधार पर सांडिल्य के पश्चात् देवद्धि को चौतीसवां प्राचार्य माना गया है परन्तु इस गाथा के मन्यकतक होने के कारण इसे प्रामाणिक नहीं माना जा सकता। -सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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