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________________ मा० सु० की शिष्य-पर०] दशपूर्वधर-काल : प्रार्य महागिरि-सुहस्ती ४६५ शान्ति श्रेणिक, स्थविर विद्याधर गोपाल, स्थविर प्रार्य वज्र और स्थविर प्रियग्रंथ से होना बताया गया है। इनके अतिरिक्त कोटिकगरण की प्रज्जसेरिणया, प्रज्जतावसी, अज्जकुबेरा, अज्जइसिपालिमा, प्रज्जनाइली, अज्ज पोमिला, प्रज्ज जयन्ती, एवं ब्रह्मद्वीपिका ये उप-शाखाएं और नागेन्द्रकुल, चन्द्रकुल प्रादि उपकुल थे। ७. प्रा० रक्षित ) इनसे किसी शाखा या गण के प्रकट ८. प्रा० रोहगुप्त | होने का उल्लेख नहीं मिलता। ६. प्राचार्य ऋषिगुप्त - इनसे मानवगण निकला । इस गण की निम्नलिखित ४ शाखाएं : (१) कासवज्जिया, (२) गोयमज्जिया, (३) वासिट्ठिया तथा (४) सोरट्ठिया । और (१) ईसिगुत्तिय, (२) ईसिदत्तिय तथा (३) अभिजयन्त-ये ३ कुलथे। १०. प्रा० श्रीगुप्त (हारितगोत्रीय) - इनसे चारण गण निकला, जिसकी निम्नलिखित ४ शाखाएं और ७ कुल थे : शाखाएं :(१) हारियमालागारी, (२) संकासिया, (३) गवेधुया और (४) वज्जनागरी। कुल :(१) वत्यलिज्ज, (२) पीइधम्मिय, (३) हालिज्ज, (४) पूसमि तिज्ज, (५) मालिज्ज, (६) प्रज्जवेडय मोर (७) कण्हसह (कृण्णसख)। ११. प्रा० ब्रह्मगणी । इनसे भी किसी गण या शाखा के प्रकट १२. प्रा० सोमगणी होने का उल्लेख उपलब्ध नहीं होता । प्राचार्य सुहस्ती का शिष्य-समुदाय वस्तुतः सुविशाल था। उसमें अनेक उच्चकोटि के विद्वान् साधक-श्रमण थे पर उन सब का परिचय उपलब्ध नहीं होता। समुच्छववादी वौषा निम्हव-परवमित्र (वीर-निर्वाण संवत् २२०) मार्य महागिरि के प्राचार्यकाल के पांचवें वर्ष में अर्थात् वी. नि. संवत् २२० में समुच्छेदवादी (क्षणिकवादी) प्रश्वमित्र नाम का चौथा निह्नव हुमा । निह्नव अश्वमित्र प्रार्य महागिरि के कोडिन्न नामक शिष्य का शिष्य था। एक. समय वह मथुरा नगरी में शास्त्राभ्यास कर रहा था। उस समय दावें अनुवाद पूर्व की नेउणिया नामक वस्तु के छिन्नछेद नय की वक्तव्यता के निम्नलिखित पाठ पर वह विचार करने लगा : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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