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________________ ४६३ जैन धर्म का प्र० एवं प्र०] दशपूर्वधर-काल : प्रायं महागिरि-सुहस्ती ___आर्य सुहस्ती के शिष्य अवन्तिसुकुमाल के इस प्रकार के अलौकिक साहस, अद्भुत त्याग और वैराग्य से उस समय का जनमानस कितना प्रभावित हुना होगा, इसको कल्पना से भी नहीं आंका जा सकता। प्रार्य महागिरि की शिष्य-परम्परा । कल्पसूत्रानुसार' आर्य महागिरि की शिष्य परम्परा क्रमशः इस प्रकार है :१. स्थविर उत्तर (बहुल) ५. स्थविर कौडिन्य २. स्थविर बलिस्सह ६. स्थविर नाग ३. स्थविर धनाढ्य । ७. स्थविर नागमित्र ४. स्थविर श्री आढय ८. कौशिक गोत्रीय षडुल्लूक रोहगुप्त इन्हें प्रत्यक्ष शिष्यों की अपेक्षा पारम्परिक शिष्य मानना अधिक उपयुक्त होगा। आठवें शिष्य कौशिक गोत्रीय स्थविर षडुल्लूक रोहगुप्त से राशिक (निन्हवों) की उत्पत्ति हुई। स्थविर उत्तर और स्थविर बलिस्सह से उत्तरबलिस्सह नामक गण निकला जिसकी ये निम्नलिखित ४ शाखाएं हैं :१. कौशाम्बिका, २. शुक्तिवतिका, ३. कोडंबाणी और ४. चन्दनागरी। प्राचार्य सुहस्ती की शिष्य परम्परा प्राचार्य आर्य सुहस्ती का शिष्यपरिवार बड़ा विशाल था। उनके १२ प्रमुख शिष्य थे, जिनके नाम, उनसे निकली हुई शाखाओं एवं कुलों के नाम सहित इस प्रकार हैं :' थेरस्स णं अज्जमहागिरिस्स एलावचगुत्तस्स इमे अट्ठ पेरा अन्तेवासी महावच्चा अभिण्णाया हुत्या, तंजहा- १. थेरे उत्तरे, २. येरे बलिस्सहे, ३. थेरे घरगड्ढे, ४. थेरे सिरिड्ढे, ५. थेरे कोडिन्ने, ६. थेरे नागे, ७. थेरे नागमित्ते, ८. घेरे छलए रोहगुप्ते कोसियगुत्तेणं : थेरेहिन्तो र छलूएहितो रोहगुत्तेहितो कोसियगुतैहितो तत्य रणं तेरासिया निग्गया। थेरेहिन्तो रणं उत्तर बलिस्सहेहिन्तो तत्य णं उत्तर बलिस्सहे नाम गणे निग्गये । तस्सणं इमामो चत्तारि साहायो एवमाहिज्जति; तंजहा : १. कोसंबिया, २. सोइत्तिया (सुत्तिवत्तिमा) ३. कोडंनाणी, ४. चन्दनागरी । २ पेरे प्रजरोहण, जसभद्दे मेहगणी, य कामिड्ढी । मुठिय, सुप्परिबुढे, रक्खिय तह रोहगुत्ते प्र ॥१॥ इसिगुत्ते सिरिगुत्ते गणो म बम्मे गणी य तह सोमे ।। दस दो प्र गणहरा खलु, एए सीसा सुहत्यिस्स ।।२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
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