SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 540
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१० जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [एक विकट समस्या . तुम्हारा बड़ा भाई ही बैठा हुअा है । जिसे तुम सिंह समझ रही हो वह सिंह नहीं तुम्हारा भाई ही था।" ___ यक्षा आदि साध्वियां जब चैत्य में लौटी तो वहां सिंह के स्थान पर अपने भाई को देख कर वे बड़ी प्रसन्न हुई। वन्दन-नमन के पश्चात् उन्होंने उत्सुकता भरे स्वर में पूछा - "ज्येष्ठार्य.! अभी कुछ ही क्षणों पहले तो आपके स्थान पर सिंह बैठा हुआ था, वह सिंह कहां गया?" आर्य स्थूलभद्र ने हंसते हुए कहा – “यहां कोई सिंह नहीं था, वह तो मैंने अपनी विद्या का परीक्षण किया था।" अपने अग्रज को अद्भुत विद्याओं का प्रागार समझ कर यक्षा आदि सातों साध्वियों ने असीम आनन्द का अनुभव किया। तदनन्तर साध्वी यक्षा ने अपने अनुज मुनि श्रीयक को एकाशन और तत्पश्चात् उपवास करने की प्रेरणा देने व उपवास के फलस्वरूप परम सुकुमार श्रीयक के दिवंगत होने की दुखद घटना मुनि स्थूलभद्र को सुनाई। मुनि श्रीयक का उपवास में मरण होने के कारण साध्वी यक्षा को बड़ा दुःख हुआ। कहा जाता है कि यक्षा ने मुनि श्रीयक की मृत्यु के लिये अपने आपको दोषी मानते हुए उग्र तपस्या करना प्रारम्भ किया। अनेक पूर्वाचार्यों ने यह मान्यता अभिव्यक्त की है कि यक्षा की कठोर तपस्या से चिन्तित हो संघ ने शासनदेवी की साधना की। देवी सहायता से साध्वी यक्षा महाविदेह क्षेत्र में श्री सीमंधर स्वामी की सेवा में पहुंची। श्री सीमंधर प्रभु ने साध्वी यक्षा को निर्दोष बताते हुए उसे चार अध्ययन चूलिका रूप में प्रदान किये। प्राचार्य भद्रबाह के समय में साध्वी समुदाय का नेतृत्व किस आर्या द्वारा किया जाता रहा, इसका तो कोई उल्लेख उपलब्ध नहीं होता पर परम विदुषी साध्वियां यक्षा आदि आर्य स्थूलभद्र की ७ बहिनों के नाम प्रमुख रूप से पाते हैं।' इससे नह अनुमान होना सहज है कि प्रार्या यक्षा का तत्कालीन साध्वीसंघ में अवश्य ही कोई विशिष्ट स्थान रहा होगा। - ज्ञानाराधन सम्बन्धी कुछ प्रश्नोत्तरों के पश्चात् वे सातों साध्वियां अपने स्थान को लौट गई। साध्वियों के लौट जाने के पश्चात् वाचना का समय आने पर जब मार्य स्थूलभद्र प्राचार्यश्री की सेवा में पहुंचे तो प्राचार्य भद्रबाहु ने स्पष्ट शब्दों में कहा- "वत्स! ज्ञानोपार्जन करना बड़ा कठिन कार्य है पर वस्तुतः उपार्जित किये हुए शान को पचा जाना उससे भी अति दुष्कर है । तुम गोपनीय विद्या को पचा नहीं सके । तुम अपने शक्तिप्रदर्शन के लोभ का संवरण नहीं कर सके। रस्स रणं भज संभूइविजयस्स माटरगुत्तस्स इमामो सत अंतेवासिणीमो महाबच्चामो, भन्नायामो होला तं जहा- अक्सा य जक्सविना..... [कल्पसूच] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002072
Book TitleJain Dharma ka Maulik Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherJain Itihas Samiti Jaipur
Publication Year2001
Total Pages984
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Story, & Pattavali
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy