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शासक
६ वर्ष
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जैन धर्म का मौलिक इतिहास-द्वितीय भाग [श्रु० की ऐति० घटनाएं श्रुतकेवलिकाल प्रारम्भ हुआ उस समय प्रथम नन्द को पाटलिपुत्र के शासन की बागडोर सम्भाले ४ वर्ष बीत चुके थे। उन ६ नन्दों में से किस-किस का कितने-कितने वर्षों तक शासन रहा, इस सम्बन्ध में "दुष्षमा श्रमणसंघ स्तोत्र" की अवचूरि में निम्नलिखित रूप से विवरण दिया गया है :
शासनकाल शासनकाल में प्राचार्य एवं प्रा० काल १. नन्द प्रथम ११ वर्ष आर्य जम्बू ४ वर्ष, प्रभव ७ वर्ष २..नन्द द्वितीय १० वर्ष । प्रभव ४ वर्ष, सय्यंभव ६ वर्ष ३. नन्द तृतीय १३ वर्ष सय्यंभव १३ वर्ष ४. नन्द चतुर्थ २५ वर्ष सय्यंभव ४ वर्ष, यशोभद्र २१ वर्ष ५. नन्द पंचम २५ वर्ष यशोभद्र २५ वर्ष ६. नन्द षष्ठ
यशोभद्र ४ वर्ष संभूतविजय २ वर्ष ७. नन्द सप्तम ६ वर्ष संभूतविजय ६ वर्ष ८. नन्द अष्टम ४ वर्ष
भद्रबाहु ४ वर्ष ६. नवम नन्द धननंद ५५ वर्ष भद्रबाहु १० वर्ष स्थूलभद्र ४५ वर्ष
दुष्षमा श्रमरणसंघ स्तोत्र में उल्लिखित उपरिवरिणत विवरण से यह स्पष्टतः प्रकट होता है कि श्रुतकेवलिकाल के प्रारम्भ होने से ४ वर्ष पूर्व प्रथम नन्द नन्दिवर्धन पाटलिपुत्र के राज्यसिंहासन पर आसीन हया और श्रुतकेवलिकाल की समाप्ति के समय वीर निर्वाण संवत् १७० में अन्तिम एवं नवम नंद धननन्द के शासनकाल के १० वर्ष व्यतीत हो चुके थे तथा श्रुतकेवलिकाल की समाप्ति के ४५ वर्ष पश्चात् १५५ वर्ष के नन्दों के शासनकाल की समाप्ति के साथ पाटलिपुत्र के राजसिंहासन पर मौर्य सम्राट चन्द्रगुप्त आसीन हुअा।
उपरोक्त ६ नन्दों में से केवल प्रथम, अष्टम और नवम नंद के अतिरिक्त अन्य ६ राजाओं के नाम उपलब्ध नहीं होते । इन : नन्द राजाओं के कुल मिला कर १५५ वर्प के राज्यकाल में किस-किस नन्द का कितने-कितने वर्ष तक राज्य रहा, इस सम्बन्ध में भी दुष्पमाश्रमणसंघस्तोत्र-प्रवचूरि को छोड़ कर अन्यत्र प्राचीन ग्रन्थों में कोई विश्वसनीय और सुव्यवस्थित उल्लेख नहीं मिलता। दुष्षमाश्रमणसंघ स्तोत्र में नव नन्दों का राज्यकाल दिया गया है, उसे तब तक अविश्वसनीय नहीं माना जा सकता जब तक कि इससे भिन्न कोई प्रामाणिक उल्लेख उपलब्ध नहीं हो जाता ।
___ प्राचीन ऐतिहासिक घटनाक्रम के पर्यवेक्षण से ऐसा प्रतीत होता है कि वीर नि० सं० ६४ से १७० तक के १०६ वर्ष के ध्रुतकेवलिकाल में एक प्रकार 'पुगो पाडलीपुरे ११, १०, १३, २५, २५, ६, ६, ४, ५५ नवनन्द एवं वर्ष १५५ रज्जे -
जंवू शेषवर्षारिण ४, प्रभव ११, सय्यं भव २३. यशोभद्र ५०, संभूतविजय.८, भद्रबाहु २४, स्थूलभद्र ४५, एवं वीरनिर्वाणात २१५ ।
[दुष्पमाकाल श्री श्रमगगसंघस्तोत्र, प्रवचूरि, पट्टावली - समुच्चय पृ० १७]
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